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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४९

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भिक्खु-पातिमोक्ख छन्द-पारिसुद्धि उतुक्खानं भिक्यु-गणना च ओवादो । उपोसथस्स एतानि पुबकिच्चन्ति वुच्चति ॥ (छन्द-पारिशुद्धिः ऋतु-ख्यानं भिक्षु-गणना चाऽववादः । उपोसथस्यैतानि पूर्वकृत्यमित्युच्यते ॥ ) छन्दपारिसुद्धि = छन्द (=सम्मति=Vote ) के योग्य ( रोगी आदि होने के कारण उपोसथमें स्वयं उपस्थित न हो सकनेवाले ) भिक्षुओंके छन्द और शुद्धता', उतुक्खान = हेमन्त आदि तीन ऋतुओंमेंसे इतने बीत गये, इतने बाकी हैं-का कहना । यहाँ (बौद्ध-) धर्ममें हेमन्त, ग्रीष्म, वर्षाको लेकर तीन ऋतुयें होती हैं। [ ( जैसे-) यह हेमन्त ऋतु है, इस ऋतुमें (प्रत्येक पक्षमें एक एक करके ) आठ उपोसथ ( होते हैं ), इस पक्ष से एक उपोसथ पूर्ण हो रहा है, एक उपोसथ (पहिले ) चला गया, (अब ) छ उपोसथ बाकी हैं ] । भिक्खुगणना च = और इस उपोसथमें एकत्रित भिक्षुओंकी गणना [इतने] भिक्षु हैं, अोवादो = भिक्षुणियोंको उपदेश देना [इस समय उनकी परंपराके लोप हो जानेसे वह उपदेश अब नहीं देना रहा] । एतानि पुब्बकिच्चन्ति वुच्चति = छन्द भेजना आदि यह पाँच काम पातिमोक्ख कहनेसे पहिले किये जाने से, उपोसथस्स = उपोसथ कर्मके, पुबकिचन्ति वुच्चति = "पूर्वकृत्य" कहे जाते हैं। उपोसथो, यावतिका च भिक्खू, कम्मप्पत्ता सभागापत्तियो च । न विजन्ति वजनीया च पुग्गला तस्मि न होन्ति, पत्तकल्लन्ति वुच्चति । ( उपोसथे यावन्तश्च भिक्षवः, कर्मप्राप्ताः सभागापत्तयश्च । न विद्यन्ते वर्जनीयाश्च पुद्गलाः तस्मिन् न भवंति, प्राप्तकल्यमित्युच्यते ॥) उपोसथो = ( कृष्ण-)चतुर्दशी, पूर्णमासी, (और विशेष कामके लिये संघका ) एकत्रित होना-इन तीन उपोसथके दिनोंमें [ आज पूर्णमासीका उपोसथ है ] । यावतिका च भिक्खू = जितने भिक्षु, कम्मप्पत्ता: उस उपोसथ-कर्मको प्राप्त, के योग्य = के अनुरूप हैं, कमसे कम चार शुद्ध भिक्षु जोकि-(१) भिक्षु-संघ द्वारा न त्यागे भिक्षु, (२) हस्त- पाशको विना छोड़े (वैठकके घिरावेको विनातोड़े)एक सीमाके भीतर स्थित, (३) सभागापत्तियो च न विज्जति (जिनमें ) दोपहर बाद भोजन करने आदिके अपराध(=आपत्तियाँ) नहीं वर्त- मान होते; (४) वज्जनीया च पुग्गला तस्मिं न होन्ति=गृहस्थ नपुंसक आदि बैठकके धिरावे (=हस्तपाश)से दूर रक्खे जानेवाले इक्कीस (प्रकारके) व्यक्ति उस (उपोसथ)में नहीं होते, पत्तकल्लन्ति वुचति-इन चार लक्षणोंसे युक्त संघका उपोसथ कर्म प्राप्तकल्य=उचित समयसे युक्त कहा जाता है। पूर्वकरण, (और ) पूर्वकृत्योंको समाप्त कर, (अपने) दोपोंको (एक दूसरेको ) बतला- कर एकत्रित हुए भिक्षु-संघकी अनुमतिसे प्रातिमोक्षकी आवृत्तिके लिये प्रार्थना करता हूँ। भन्ते ! संघ मेरी ( वातको) सुने-अाज पूर्णमासी का उपोसथ है। यदि संघ १ संघके सामने आनेवाले अभियोग या दूसरे काममें अपनी सम्मति, अनुपस्थित भिक्षुणी दृसरी भिक्षुणी द्वारा भेज सकती है, इसीको यहाँ छन्द कहा गया है। इसी प्रकार रोगी भिक्षुणी अपनी अदोपता ( =शुद्धता )को भी दूसरे द्वारा भेज सकती है, जिसे पारिशुद्धि कहा गया है । २ यहाँ जिस दिनका उपोसथ हो, उसका नाम लेना चाहिये ।