४३६ ] ४-चुल्लवग्ग [ ५४२७ "भिक्षुओ! आठ वातोंसे युक्त उपासकके लिये संघ पत्त-उपकुज्जन (=पात्र उघाळना) करे- (१) भिक्षुओंके अलाभके लिये०, (२)० अनर्थके लिये०; (३) ० अवासके लिये प्रयत्न नहीं करता; (४) भिक्षुओंकी आक्रोश परिहास नहीं करता; (५) भिक्षुओंकी आपसमें फूट नहीं करता; (s) बुद्धकी निन्दा नहीं करता; (७) धर्मकी निन्दा नहीं करता; (८) संघकी निन्दा नहीं करता।- इन पाँच०। 179 "और भिक्षुओ! इस प्रकार पत्त-उक्कुज्जन करना चाहिये--चतुर ममर्थ संबको सूचित करे- "क. ज्ञ प्ति०। ख. अनु श्रा व ण ०। "ग. धा र णा-'संघने वड्ढ लिच्छवीके लिये पान उघाल दिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है--ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" ३-सुंसुमारगिरि तव भगवान् वैशालीमें इच्छानुसार विहारकर जिधर भर्ग है उबर चारिकाके लिये चल पने जमशः चारिका करते जहाँ भर्ग था, वहाँ पहुँचे । वहाँ भगवान् भर्ग (देश) के सं सु मा र गिरि के भेम कला व न के मृ ग दा व में विहार करते थे। (७) वोधिराजकुमारका सत्कार उस समय बोधि राजकुमारने श्रमण या ब्राह्मण या किसी भी मनुष्यसे न भोगे को क न द नामक प्रासादको हालहीमें बनवाया था। तब बोधि-राजकुमारने सं जि का पुत्र माणवकको संबोधित किया-- "आओ तुम सौम्य ! संजिकापुत्र ! जहाँ भगवान् हैं, वहाँ जाओ। जाकर मेरे वचन मे, भग- वान्के चरणोंमें शिरसे वन्दनाकर, आरोग्य, अन-आतंक, लघु-उत्थान (=शरीरकी कार्यक्षमता) बल, अनु- कूल विहार, पूछो-'भन्ते ! बोधि-राजकुमार भगवान्के चरणोंमें शिरसे वन्दनाकर आरोग्य० पूछना है, और यह भी कहो--'भन्ते ! भिक्षु-संघसहित भगवान् बोधि-राजकुमारका कलका भोजन स्वीकार करें।" "अच्छा हो (=भो), कह संजिका-पुत्र माणवक जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्ने .. (कुशल प्रश्न ).....पूछ, एक ओर बैट गया। एक ओर बैठकर मंजिका-पुत्र माणवकने भगवान्गे कहा-“हे गौतम ! बोधि-ग़जकुमार आपके चरणोंमें । बोधिगज-कुमारका कलका भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनद्वारा स्वीकार किया । तब मंजिका-पुत्र माणवक भगवान्की स्वीकृति जान, आमनमे उट जहाँ बोधि-राजकुमार था, वहाँ गया । जाकर बोधि गजकुमाग्मे बोला-- "आपके वचनमे मैने उन गौतमको कहा-'हे गौतम ! बोधि-राजकुमार० । श्रमण गौतमने स्वीकार किया।" तब बोधि गजक्रुमाग्ने उन गतकं बीतनेपर अपने घरमें उत्तम ग्वादनीय भोजनीय (पदार्थ। तैयार करबा, को क न द-प्रामादको सफेद (= अवदात) धम्मोंसे मीढ़ीचे नीचे तक बिछवा, मंजिकापुत्र माणवकको मंत्रोधित किया- "आओ नौम्य ! मंजिकापुत्र ! जहाँ भगवान् हैं. वहाँ जाकर भगवान्को काल यहो- 'भन्ले! काल है. भान (भोजन) नैयार हो गया।" 9 m3
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