पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५७३।१] घळा, झाळू [ ४३७ "अच्छा भो!". ...काल कह.......। तब भगवान् पूर्वाह्न समय पहिनकर पात्रचीवर ले, जहाँ बोधि-राजकुमारका घर (=निवेसन) था, वहाँ गये। उस समय बोधि-राजकुमार भगवान्की प्रतीक्षा करता हुआ, द्वारकोप्ठक (= नौबत- खाना) के बाहर खड़ा था। बोधि-राजकुमारने दूरसे भगवान्को आते देखा । देखते ही अगवानीकर भगवान्की वन्दनाकर, आगे आगे करके जहाँ कोकनद-प्रासाद था, वहाँ ले गया। तब भगवान् निचली सीढ़ीके पास खळे हो गये। बोधि-राजकुमारने भगवान्से कहा-“भन्ते ! भगवान् धुस्सोंपर चलें। सुगत ! धुस्सोंपर चलें, ताकि (यह) चिरकाल तक मेरे हित और सुखके लिये हो।" (८) पाँवळेका निषेध १-ऐसा कहनेपर भगवान् चुप रहे। दूसरी बार भी वोधि-राजकुमारने । तीसरी बार भी० । तब भगवान्ने आयुष्मान् आनन्दकी ओर देखा । आयुष्मान् आनन्दने बोधि-राजकुमारको कहा- "राजकुमार! धुस्सोंको समेट लो। भगवान् पाँवळे (-चैल-पंक्ति)पर न चढ़ेंगे। तथागत आनेवाली जनताका ख्याल कर रहे हैं।" बोधि-राजकुमारने धुस्सोंको समेटवाकर, कोकनद-प्रासादके ऊपर आसन विछवाये। भगवान् कोकनद-प्रासादपर चढ़. संघके साथ विछे आसनपर बैठे। तव बोधि-राजकुमारने बुद्धसहित भिक्षुसंघको अपने हाथसे उत्तम खादनीय भोजनीय (पदार्थो) से संतर्पित किया, संतुष्ट किया। भगवान्के भोजनकर पात्रले हाथ खींच लेनेपर, वोधिराजकुमार एक नीचा आसन ले, एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे बोधिराजकुमारको भगवान् धार्मिक कथासे. . .समुत्तेजित संप्रहर्षितकर आसनसे उठकर चले गये। तव भगवान्ने उनी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! पाँवळेपर नहीं चलना चाहिये, जो चले, उसे दुक्कटका दोष हो।" 180 २---उस समय एक अपगतगर्भा =लळायन) स्त्रीने भिक्षुओंको निमंत्रित कर कपळा (=दुम्म) विछा यह कहा- "भन्ते ! कपड़ेपर चलें।" भिक्षु हिचकिचाकर नहीं चल रहे थे । "भन्ने! मंगलके लिये कपड़ेपर चलें।" भिक्षु हिचकिचाकर कपड़ेपर न चले। तब वह स्त्री हैरान ० होती थी-'कैसे आर्य लोग मंगलके लिये याचना करनेपर भी पाँवड़ेपर नहीं चलते !' भिक्षुओंने उस स्त्रीके हैरान ० होनेको सुना । तव उन भिक्षुओंने यह बात भगवान्मे कही 10-- "भिक्षुओ ! गृहस्थ लोग (मंगल । होनेवाले कामोंके) करनेवाले होते हैं। 181 "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ गृहस्थोंके मंगलके लिये याचना करनेपर पाँवळेपर चलनेकी।" 182 F३-पंखा, छींका, छत्ता, दण्ड, नख-केश, कन-खोदनी, अंजन-दानी ४-श्रावस्ती (१) घळा, माळ तब भगवान्ने भर्ग (देग) में इच्छानुसार विहारकर जिधर श्रा व स्ती है, उधर चारिकाके