पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५०८

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o ५७३८] ताँवे काँसेके वर्तन [ ४४१ "हाँ काट सकते हैं, भन्ते !" तव भगवान्ने इसी संबंधमें० भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ छुरे, छुरेकी सिल, छुरेकी सिपाटिका (=चमोटी) न म त क (=नहन्नी ? ) सभी छुरेके सामानकी।" 2073 उस समय प ड वर्गी य भिक्षु मूंछ कटवाते थे, मूंछ बढ़ाते थे, गोलोमिका ( बकरे जैसी दाढ़ी करवाते थे, चौकोर (=चतुरस्रक) कराते थे, परिमुख (= (=छातीका बाल कटवाना) कराते थे, अड्डुरक (=पेटके बालोंमें रोम पंक्ति छोड़ना) कराते थे, दाढ़ी (=दाठिका) रखते थे, गुह्य स्थानके रोम कटवाते थे। लोग हैरान ० होते थे-जैसे कामभोगी गृहस्थ ।०-- "भिक्षुओ! मुंछ नहीं कटवानी चाहिये, मूंछ बढ़ानी न चाहिये; गोलोमिका०, चतुरस्रकमें, परिमुख, अड्डुरक, नहीं कटवाना चाहिये, दाढ़ी नहीं रखनी चाहिये, गुह्य स्थानके रोमको नहीं कटवाना चाहिये, जो ० कटवाये उसे दुक्कटका दोप हो।" 204 उस समय षड्वर्गीय भिक्षु कर्तरिका (=कैची)से वाल कटाते थे। • जैसे कामभोगी गृहस्थ ।०- "भिक्षुओ ! कैचीसे वाल नही कटाना चाहिये, ० दुक्कट ०।" 205 उस समय एक भिक्षुके शिरमें घाव था, छुरेसे वाल मुंळवा न, सकता था । 0-- अनुमति देता हूँ, रोगके कारण कैचीसे वाल कटवानेकी।" 206 उस समय भिक्षु नाकमें लम्बे लम्बे केश धारण करते थे। --जैसे कि पिशाच (=पिशा- चिल्लिका) 10- "भिक्षुओ! नाकमें लम्बे लम्बे केश न धारण करना चाहिये, 10 दुक्कट ०।" 207 उस समय भिक्षु ठीकरीसे भी मोमसे भी, नाकके केशोंको उखळवाते थे, नाक दर्द करती थी।-- अनुमति देता हूँ, चिमटी (संडास) की।" 208 उस समय प ड्व गर्गी य भिक्षु पके बालोंको निकलवाते थे।०-जैसे कामभोगी गृहस्थ ।०- "भिक्षुओ! पके वालोंको न निकलवाना चाहिये, ० दुक्कट ० ।" 209 (७) कन-खोदनी उस समय एक भिक्षुका कान मैलसे भरा हुआ था ।- " ० अनुमति देता हूँ कर्णमल-हरणीकी।" 210 उस समय प ड्व गर्गी य भिक्षु नानाप्रकारकी कर्णमलहरणियाँ रखते थे सुनहली भी, रुपहली भी। लोग हैरान ० होते थे-जैसे कामभोगी गृहस्थ ।०- "भिक्षुओ ! मुनहली रुपहली (आदि) नाना प्रकारकी कर्णमलहरणियाँ नहीं रखनी चाहिये, • दुवकट ० । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ हड्डी, दाँत, सींग, नरकट, वाँस, काठ, लाख, फल, तावे और गंग्यकी (कर्णमलहरणियोंकी)।" 21 I (८) ताँबे काँसके वर्तन उन समय पड्वर्गीय भिक्षु बहुतसे तांबे (लोह) काँमेके भाँडोंका संचय करते थे। लोग विहान्में घूमने वक्त देखकर हैरान होते थे-कने शाक्यपुत्रीय श्रमण बहुतसे ताँवे, काँसके भाँडोंको संचय कन्ने है.. जने कि कंसपत्थरिका (=कमेरा)। भगवानमे यह बात कही।- "भिक्षुओ ! नांवे, कामेवे नांडोंका संचय नहीं करना चाहिये, ० दुक्कट ० । 212 0