पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५०९

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४४२ ] ४-चुल्लबग [1543 (९) अंजनदानी उस समय भिक्षु अंजनदानीको भी, अंजन सलाईको भी, कर्णमलहरणीको भी, बंधनको भी रखने में हिचकिचाते थे ।०- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अंजनदानीकी, अंजन मलाईकी, कर्णमलहरणीकी, बंबन माला- की।" 213 (1 O (1 , ४-संघाटी, आयोग-पट्ट, धुंडी, मुद्धी, वस्त्र पहिननेके ढंग (१) संघाटी उस समय पड् वर्गीय भिक्षु संघाटी (के सहित) पलथी मार बैठते थे, मंघाटीसे पात्र ग्गा ग्वाते थे।०- "भिक्षुओ! संघाटी पलथीसे नहीं बैठना चाहिये, ० दुक्कट ०।" 214 (२) आयोग-पट्ट उस समय एक भिक्षु रोगी था, वह विना आ यो ग १ उसे ठीक न होता था ।- अनुमति देता हूँ आ यो ग की।" 215 (क) आ यो ग बु न ने का सा मा न-तब भिक्षुओंको यह हुआ-कैसे आयोगको बुनना चाहिये । भगवान्से यह बात कही।- • अनुमति देता हूँ, ताँत (=तन्तक), वेमक (=बैं), बट्ट (=झाप) शलाका और गभी तांत (=कर्प) के सामानकी।" 216 (३) कमरबंद १-उस समय एक भिक्षु विना कमरबंद (=कायबंधन) वाँधे ही गाँवमें भिक्षाके लिये गया, मळकपर उसका अन्तरवासक खिसककर गिर गया। लोगोंने ताली पीटी। वह भिक्षु मूक हो गया। उगने आगममें जाकर भिक्षओंमे यह बात कही।०-- ० विना कमरबंदके गाँवमें भिक्षाके लिये नहीं प्रवेश करना चाहिये, ० दुक्कट ० । ० अनुमति देता हूँ, कमरबंदकी ।" 217 २--उस समय पड्वर्गीय भिक्षु कलावुक २, देड्डुभक, मुरज," मद्दवीण५ नाना प्रकार कमरबंद धारण करते थे ।०-जैसे कामभोगी गहन्थ । ०- "भिक्षुओ ! कलाबुक, देड्डभक, मुरज, मवीण-नाना प्रकारके कमरबंदोंको नहीं धारण करना चाहिये, ० दुक्कट | 218 भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, दो प्रकारके कमरबन्दोंकी-पट्टीकी और गूकरके आँत जगी।" ३-कमरबंदवे. किनारे छिन जाते थे।-- अनुमति देता हूँ मुरज और मवीणकी।" 219 ४–कमरबंदके छोर छिन जाते थे।- It 3 " २ गोल। ६ ५ उकळं बैठे पीठ-पैरमें बाँधनेका अंगोछा। ३ पानीके मापके फन जमा। मृदंग जैमा। ५ पामंगके आकारका। माधारणतया बनी, या महलीके कांटे जैसी बुनी (--अट्ठकथा) ।