४-चुल्लवग्ग . ४६६ ] [ $9213 "सारिपुत्र! तू क्यों यहाँ बैठा है ?" तब आयुष्मान् सारिपुत्र ने सारी बात भगवान्से कह दी-०१ । धिक्कारकर धार्मिक कथा कह, भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! (संघके) उद्देशसे कियेमें भी वृद्धपनके अनुसार (चीज़ोंके ग्रहण करनेके नियम)को नहीं उल्लंघन करना चाहिये जो उल्लंघनकरे उसे दुक्कटका दोप हो।" I13 (२) महार्य शय्याका निषेध उस समय लोग भोजनके समय अपने घरों में ऊँचे शयन, महाशयन बिछाते थे-जैसे कि आसन्दी, पलंग, गोनक (=रोयेंदार कम्बल) चित्रक (=नकशेदार), पटिक (=सीतलपाटो ?), पटलिक (=फूलदार), तूलिक (=रूईदार), विकतिक (=सिंह व्याघ्रादिके चित्रवाला), उद्दलोमी (-ऊनी चादर जिसके दोनों ओर झालर लगे हों), एकन्तलोमी (ऊनी चादर जिसके एक ओर झालर लगी है), कठिस्स (=कामदार रेशम), कौषेय, कम्बल, कुत्तक (=एक प्रकारका सूती कपड़ा), हाथीका विछौना (=झूल), घोळेका बिछौना, रथका विछौना, मृगछाला (अजिनप्पवेनी ), कादलि- मृगकाश्रेष्ठ प्रत्यस्तरण ( =विछौना ), ऊपरकी चादर और (=सिरहाने पैरहाने) दोनों ओर लाल तकियोंके साथ। भिक्षु सन्देहमें पळ नहीं बैठे थे । भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! आसन्दी, पलंग और तूलिक इन तीनको छोळ, बाकी सभी गृहस्थोंके (आसनोंपर) वैठनेकी, और उनपर लेटनेकी अनुमति देता हूँ।" II4 उस समय लोग भोजनके समय अपने घरमें रूई डाले मंचको भी, पीठको भी बिछाते थे। नहीं बैठते थे।- • अनुमति देता हूँ, गृहस्थोंके विछौनेपर बैठने और लेटने की।" IIS (३) आसन देना लेना उस समय एक आजीवक-अनुयायी महामात्य (=राजमंत्री) ने संघको भोज दिया था। आयु- प्मान् उ प न न्द शा क्य पुत्र ने पीछे आ, भोजन करते समय पासके भिक्षुको उठा दिया। भोजन स्थानमें हल्ला हो गया। तब वह महामात्य हैरान होता था -कैसे शा क्य पुत्रीय श्रमण पीछे आ भोजन करते समय पासके भिक्षुको उठा देते हैं, जिससे कि भोजन स्थानमें हल्ला मचता है, दूसरी जगह बैठकर भी तो यथेच्छ (भोजन) किया जा सकता है ? भिक्षुओंने उस महामात्यके हैरान होनेको सुना। अल्पेच्छ-भिक्षु ० भगवान्से कहा ।- "सचमुच भिक्षुओ ! ०?" “(हाँ) सचमुच भगवान् !" • फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! भोजन करते समय भिक्षुको उठाना न चाहिये, जो उठाये उसको दुक्कटमा दोष हो।" 116 यदि उठाता है, और (वह भिक्षु) भोजन खतमकर चुका है, तो कहना चाहिये-जाओ पानी लाओ। यदि ऐना (कहके अवसर) मिल सके तो ठीक; न हो तो कवलको अच्छी तरह निगलकर अपनी वृद्धको आसन देना चाहिये। II7 64 O O 'देखो पृष्ठ ४६४ ।
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