पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५३७

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४७० ] ४-चुल्लवग्ग [ ६५२ "०अनुमति देता हूँ, पंडक, स्त्री और (स्त्री पुरुप) दोनों लिंगवालेको छोळ, अ-समान-आसन वालोंके साथ लम्बे आसनपर वैठनेकी।" 137 तव भिक्षुओंको हुआ-'कितने तक (लम्बा) लम्बा आसन (कहा) जाता है ?'- "०अनुमति देता हूँ, जो तीनसे नहीं पूरा होता उसे लम्बा आसन (मानने) की।" 138 11 1 (4 5५-विहार और उसके सामानका बनवाना, बाँटने योग्य वस्तुयें, वस्तुओंका हटाना या परिवर्तन, सफाई (१) सांघिक वस्तु उस समय विशाखा मृगार-माता संघके लिये आलिन्द (=ड्योढ़ी) सहित हस्तिनख- प्रासाद बनवाना चाहती थी। तब भिक्षुओंको यह हुआ—'क्या भगवान्ने प्रासादके उपयोगकी अनुमति दी है या नहीं?'0- "०अनुमति देता हूँ, सभी प्रासादोंके उपयोगकी।” 139 उस समय को स ल रा ज प्र से न जित् की माता (=अय्यका) मरी थी। उसके मरनेसे संघको बहुतसी अ-विहित वस्तुएँ मिलीं, जैसे कि आसन्दी , पलंग, गोनक (=रोयेंदार कम्बल) ०१ दोनों ओर लाल तकियोंके साथ० कादलीमृगका उत्तम विछौना। भगवान्से यह बात कही।- "०अनुमति देता हूँ, आसन्दीके पैरको काटकर इस्तेमाल करनेकी, पलंगके बालको तोळकर, इस्तेमाल करनेकी, तूल (= रूई) की गुत्थियोंको फोळकर तकिया बनानेकी, और वाकीको भूमिका विछौना वनानेकी।" 140 (२) पाँच अ-देय १-उस समय श्रावस्तीके पासके एक ग्रामके आवासके भिक्षु आनेवाले भिक्षुओंके लिये शयन- आसनका प्रबन्ध करते करते तंग आगये थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ—'आवसो! हम इस वक्त आनेवाले भिक्षुओंके लिये शयन-आसनका प्रबन्ध करते करते तंग आ गये हैं। आओ आबुमो! हम सभी सांघिक गयन-आसनको एकको दे दें, और उस (के पास) से लेकर इस्तेमाल करेंगे।' (तब) उन्होंने सभी सांघिक गयन-आसन एकको दे दिया। नवागन्तुक भिक्षुओंने उन भिक्षुओंसे यह कहा- "आवुसो! हमारे लिये शयन-आसन बतलाओ।" "आवुमो ! नांधिक शयन-आमन नहीं है, हमने सब (शयन-आसन) एकको दे दिये।" "क्या आवुसो! तुमने सांघिक शयन-आसनको दे डाला?" "हाँ, आबुनो! अल्पेच्छ भिक्षु०-हैरान० होते थे -० । भगवान्मे यह बात कही।- "मचमुच भिक्षुओ! "(हाँ) मत्रमुच, भगवान् !' भगवान्ने फटकारा-"कैने भिक्षुओ! बह मोधपुरुप मांधिक गयन-आसनको दे डालेंगे !! न यह अप्रसन्नीको प्रसन्न करनेरे लिये है।" फटकारका भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- " ०?" 11 'देखो पृष्ठ १६६।