पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५३६

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६१४७ ] एक आसनपर बैठना [ ४६९ "आवुस उपनन्द ! आपने श्रावस्तीमें शयन-आसन ग्रहण किया है न?" "हाँ, आवुसो! "क्या आवुस उपनन्द ! आप अकेले दो (आसनों) को रखे हैं?" "आवुसो ! मैं इसे छोळता हूँ, उसे ग्रहण करता हूँ।" अल्पेच्छ० भिक्षु० । भगवान्से यह बात कही। तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षुसंघको जमाकर आयुष्मान् उपनन्द० से यह पूछा- "सचमुच उपनन्द ! तू अकेले दो (आसनों) को रखे है ?" “(हाँ) सचमुच भगवान् !" बुद्ध भगवान्ने फटकारा-"कैसे तू मोघपुरुष ! अकेले दो (स्थानों) को रखता है। मोघपुरुष ! तूने वहाँका रखा, यहाँका छोळ दिया; यहाँका रखा, वहाँका छोळ दिया। इस प्रकार मोघपुरुप ! तू दोनों से बाहर हुआ। मोघपुरुष ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! एकको दो (स्थान) नहीं रोक रखना चाहिये, दुक्कट ०।" 131 (७) एक आसनपर वैठना उस समय भगवान् अनेक प्रकारसे भिक्षुओंको विनयकी कथा कहते थे, विनयकी प्रशंसा करते थे, विनयके आचरणकी प्रशंसा करते थे.. "आयुष्मान् उ पा लि की प्रशंसा करते थे। भिक्षु-भगवान् अनेक प्रकारसे विनयकी कथा कहते हैं,० आयुष्मान् उपालिकी प्रशंसा करते हैं- (सोच), आओ आवुसो ! हम आयुष्मान् उपालिसे वि न य सीखें। (और) वहुतसे वृद्ध मध्यम (वयस्क) भिक्षु आयुष्मान् उपालिके पास वि न य सीखते थे। स्थविर भिक्षुओंके गौरवके ख्यालसे आयुष्मान् उपालि खळे खळे पढ़ाते थे। स्थविर भिक्षु भी धर्मके गौरवसे खळेही खळे बँचवाते थे। उससे स्थविर भिक्षु भी तकलीफ़ पाते थे, आयुष्मान् उपालि भी । भगवान्से यह वात कही "०अनुमति देता हूँ (अपनेसे) कमके भिक्षुके पढ़ते समय वरावर या ऊँचे आसनपर बैठनेकी, स्थविर भिक्षु बॅचवाते समय धर्मके गौरवसे वरावर बैठे, या धर्मके गौरवसे (उससे) निचले आसन- 44 पर।" 132 11 O- उस समय बहुतसे भिक्षु आयुष्मान् उपालिके पास खळे खळे पाठ सुनते तकलीफ़ पाते थे। भग- वान्ने यह बात कही।- "अनुमति देता हूँ समान आसनवालोंको एक साथ बैठनेकी।" 133 तब भिक्षुओंको यह हुआ—'कैसे समान-आसनवाला होता है ?' "अनुमति देता हूँ, तीन वर्षके भीतर (के भिक्षुओं) को एक साथ बैठनेकी।" 134 उस समय बहुतने समान-आसनवाले (भिक्षुओं)ने चारपाईपर एक साथ बैठ चारपाई तोळ दी, पीटपर दैट पीटको तोळ दिया। ०- "अनुमति देता हूँ, त्रिवर्ग (=तीनके समुदाय) को (एक साथ) चारपाईपर ( वैठनेकी), विदर्गको पीट (पर बैठनेकी)।" 155 त्रिवर्गने भी चारपाई पर बैठ चारपाई तोळ दी, पीठपर बैठ पीठ तोळ दी।- "अनुमति देता हूँ, हिवर्ग ( दो आदमियों) को चारपाईकी, द्विवर्गको पीठकी।" 136 उन ननय निक्षु अ-समान-आननवालोंके नाथ लम्बे आसनपर बैठने में संकोच करते थे।-