पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५४३

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1 ४७६ ] ४-चुल्लवग्ग [ ६६।१२ "०अनुमति देता हूँ, पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुको अल्पमात्रक-विसर्जक ( थोड़ीसी चीज़ोंका बाँटनेवाला) चुननेकी-१।" 177 "उस अल्पमात्रक-विसर्जक भिक्षुको एक एकके लिये मुई देनी चाहिये, गस्त्रक (=कंत्री) ०, जूता०, कमरबंद०, अंसबंधक (=कंधेसे लटकानेका बंधन) ०, जलछक्का०, धर्मकरक (=गळुआ) ०, कुसि (=पटिया) ०, अर्धकुसि (=वेळी पटिया) ०, मण्डल (=गळुई) ०, अर्धमण्डल०, अनुवाद परिभण्ड (=पेटी) देना चाहिये। यदि संघके पास घी, तेल मधु, ग्वाँड हो, तो खानेके लिये एक बार देना चाहिये, यदि फिर प्रयोजन हो, तो फिर देना चाहिये।" (१०) शाटिक ग्रहापक उस समय संघका टेक-ग्रहापक (=गाटक बाँटनेवाला) न था 10-- "० अनुमति देता हूँ, पाँच बातोंमे युक्त भिक्षुको गाटिक-ग्रहापक त्रुननेकी-०°।" 178 (११) आरामिक-प्रेषक उस समय संघका आरामिक-प्रेपक (-आरामके नौकरोंका अफ़सर) न था।6-- "०अनुमति देता हूँ, पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुको आरामिक-प्रेपक चुननेकी-०१।" 179 (१२) श्रामणेर-प्रेषक उस समय संघके पास श्रामणेर-प्रेपक (=श्रामणेरोंका अफ़सर) न था।०-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुको श्रामणेर-प्रेपक चुननेकी-०°।" 180 तृतीय भाणवार (समाप्त) ॥३॥ सेनासनक्खन्धक समाप्त ॥६॥