१२ ] भिक्खु-पातिमोक्ख [ ६२१७-१० -किसी भिनुको अपने लिये स्वामियुक्त ( = पुराने ), बड़े विहारको बनवाते समय ( १ ) मकानके विषय में भिक्षुओंको सम्मति देनेके लिये बुलाना चाहिये और भिक्षुओंको मकानकी जगह ऐसी बतलानी चाहिये जहाँ ( मकान बनानेमें जीवों की ) हिंसा न हो, जहाँ पहुँचना ( गाड़ी या सीढ़ी आदिसे ) आसान हो । भिक्षुका हिंसा युक्त तथा पहुँचनेमें कठिन स्थानमें कुटो बनवाना या मकानकं बारे में सलाह लेनेके लिये भिक्षुओंको न बुलाना संघादिसेस है। (३) पाराजिकका इलज़ाम लगाना ८-कोई भिक्षु दुष्ट (चित्तसे ) द्वेपसे, नाराज़गीसे दूसरे भिक्षुपर निर्मल पाराजिक दोष लगाता है, जिसमें कि वह इस ब्रह्मचर्यसे च्युत हो ( भिक्षु आश्रम छोड़) जाय । फिर पोछे पूछने या न पूछनेपर वह झगड़ा निर्मूल ( मालूम ) हो और उस ( दोष लगाने वाले ) भिक्षुका दोष सिद्ध हो तो संघादिसेस है।' ९-किसी भिक्षुका दुष्ट (चित्तसे) द्वेषसे नाराज़गीसे दूसरे प्रकारके झगड़े (= अधि- करण )की कोई छोटो बात लेकर दूसरे भिक्षुको पाराजिक दोपका लगाना, जिसमें कि वह इस ब्रह्मचर्यसे च्युत हो जाय । फिर पीछे पूछने या न पूछनेपर उस झगड़ेकी अस- लियत मालूम हो और उस ( दोष लगाने वाले ) भिक्षुका दोष सिद्ध हो, (तो उसे ) संघादिसेस है। संघमें फूट डालना १०-यदि कोई भिक्षु एक मत संघमें फूट डालनेका प्रयत्न करे या फूट डालने वाले झगड़े को लेकर ( उसपर ) हठ पूर्वक कायम रहे ( जव ) उसे अन्य भिक्षु इस प्रकार कहें-आयुष्मान ! मत ( आप ) एकमत संघको फोड़नेका प्रयत्न करें, मत (आप) फोड़ने वाले झगड़ेको लेकर (उसपर) हठ पूर्वक कायम रहें। आयुष्मान् ! संघसे मेल करिये, परस्पर हेल मेल रखने वाला, विवाद न करनेवाला, एक उद्देश्य वाला, एक मत रखनेवाला संघ सुख- पूर्वक रहता है। उन भिक्षुओं द्वारा ऐसा समझाया जानेपर भी यदि वह भिक्षु उसी प्रकार (अपनी ज़िदको ) पकड़े रहे, तो दूसरे भिक्षु उस भिक्षुको उस (जिद )से हटानेके लिये तीन वार तक कहें । यदि तोन वारके कहनेपर उस (ज़िद )को छोड़ दे तो यह उसके लिये अच्छा है ; यदि न छोड़े तो यह संघादिसेस है।" १ भातिय राजा ( लंकामे १४१-६५ ई० )के समय महाविहार-वासी और अभय-गिरि- वासी स्थविरोंका इस विषयमें विवाद हुआ। "राजाने सुनकर स्थविरोंको जमा कर दीर्घकारायण नामक ब्राह्मण संखीको स्थविरोंकी बात सुनने के लिये भेजा । ( अट्ठकथा )। २ अट्ठकथाम महापद्म स्थविर, महासुन्म स्थविर और गोदत्त स्थविरके मत उद्धृत पिटक चूल-अभय स्थविर लोहप्रासाद ( लंका )में भिक्षुओंको विनयकी कथा कह कर उठे ( अट्ठकथा )। ४ उस समय बुद्ध भगवान् राजगृहके वेणुवन कलंदकनिवापमें विहार करते थे। तब देवदत्त, कटमोर-तिस्सक कोकाकिल और ग्वं इदेवीपुल समुद्रदत्तके पास जाकर बोला- आओ आवुसो ! हम श्रमण गौतमके संघ चत्रको फोड़ें। आओ! "हम श्रमण
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