६२-संघादिसेस' (५-१७) आयुष्मानो ! यह तेरह दोष संघादिसेस कहे जाते हैं- (१) कामासक्तिता १-स्वप्नके अतिरिक्त जान-बूझकर वीर्य-मोचन संघादिसेस है। २-किसी भिक्षुका विकार युक्त चित्तसे किसी स्त्रीके हाथ या वेणीको पकड़कर या और किसी अंगको छूकर शरीरका स्पर्श करना संघादिसेस है। ३-किसी भिक्षुका विकारयुक्त चित्तसे किसी स्त्रीके साथ ऐसे अनुचित वाक्योंका कहना जिन्हें कि कोई युवा किसी युवतीसे मैथुनके सम्बन्धमें कहता है, संघादिसेस है। ४-किसी भिक्षुका विकार युक्त चित्तसे अपनो काम-वासनाकी तृप्तिके लिये किसी स्त्रीसे यह कहना-भगिनी ! सभी सेवाओं में 'यह' सर्व श्रेष्ट सेवा है कि तू मेरे जैसे सदाचारी, ब्रह्मचारी पुण्यात्माको मैथुनसे सेवा करे, संघादिसेस है। ५-किसी भिक्षु का (दूत वन ) किसी स्त्रीको बातको किसी पुरुषसे या किसी पुरुषकी बातको किसी स्त्रीसे जाकर कहना-(तू ) जार बन या पत्नी बन या अन्ततः कुछ ही क्षणोंके लिये ( उसकी वन ), संघादिसेस है। (२) कुटी-निर्माण ६-याचना द्वारा किसी भिक्षुको अपने लिये स्वामिरहित (= नई ) कुटी बनवाते समय, ( १ ) प्रमाण-युक्त बनवाना चाहिये । प्रमाण इस प्रकार है-लंबाईमें बुद्धके वित्ते ( =चालिश्त )से वारह वित्ता और चौड़ाईमें सात वित्ता । (२) मकानके विषयमें भिक्षुओंको सम्मति देनेके लिये बुलाना चाहिये और भिक्षुओंको मकानकी जगह ऐसी बतलानी चाहिये, जहाँ ( मकानके वनानेमें जीवोंकी) हिंसा न हो, जहाँ पहुँचना ( गाड़ी या सीढ़ी आदिसे ) सुकर हो । भिक्षुका याचना करके हिंसा युक्त तथा पहुँचनेमें कठिन स्थानमें कुटी वनवाना या भिक्षुओंको मकानके वारेमें बतलानेके लिये न बुलाना या ( कुटोको ) प्रमाणके अनुसार न वनाना संघादिसेस है। १ इस दोपके लिये कुछ समयका परिवाल ( मुअत्तली ) आदि दंड संघ ही दे सकता है, बहुत भिक्षु या एक भिक्षु इसका निर्णय नहीं कर सकते; इसीलिये इसे संघादिसेल कहते हैं । ( -अट्टकथा )। बुद्ध लंबे कदके थे । यदि हम उन्हें ६ फुट कदका मानें तो कुटीका भीतरी भाग ५०६ फुट x ६ फुट होना चाहिये । २॥६-६ ] [ ११
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