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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५६८

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- ८६१।३ ] गमिकके कर्तव्य पात्र-चीवर ग्रहण करते थे। न पीनेके (पानी) के लिये पूछते थे। (अपनेसे) वृद्ध आगन्तुक भिक्षुका अभिवादन नहीं करते थे। न शय्या-आसन प्रज्ञापन (विछाना) करते थे। जो अल्पेच्छ ० भिक्ष थे, वह हैरान ० होते थे- । -- "तो भिक्षुओ! आवासिकोंके व्रतका विधान करता हूँ, जैसे कि आवासिक भिक्षुओंको वर्तना चाहिये- "भिक्षुओ! यदि आगन्तुक भिक्षु अपनेसे वृद्ध हो, तो आसन प्रदान करना चाहिये, पादोदक, पाद-पीट, पाद-कठलिक पास रखना चाहिये । अगवानी करके पात्र-चीवर ग्रहण करना चाहिये । पीनेके (पानी) के लिये पूछना चाहिये। यदि सकता हो (बीमार आदि न हो) तो जूता पोंछना चाहिये । जूता पोंछते वक्त पहिले सूखे कपळेसे पोंछना चाहिये, पीछे गीलेसे । जूता पोंछनेके कपळेको धोकर एक ओर रख देना चाहिये। यदि आगन्तुक भिक्षु वृद्ध हो, तो अभिवादन करना चाहिये । शयन-आसन बतलाना चाहिये । गोचर०, अ-गोचर०, शैक्ष-सम्मत कुलोंको०, ०१ संघका कतिक-संस्थान (स्थानीय नियमकी बातें) वतलानी चाहिये--किस समय प्रवेश करना चाहिये, किस समय जाना चाहिये । शयन-आसन बतलाना चाहिये—यह आपके लिये शयन-आसन है। (अधिक समयसे) वास किया है या वास नहीं किया है यह बतलाना चाहिये। यदि आगन्तुक (भिक्षु) नवक (=नवही) है, तो अभिवादन करने देना चाहिये, शयन-आसन बतलाना चाहिये-यह आपके लिये शयन-आसन है। ० 'किस समय जाना चाहिये। "भिक्षुओ ! यह आवासिक भिक्षुओंके व्रत हैं, ०।" 2 (३) गमिक के व्रत उस समय गमिया भिक्षु लबाली-मिट्टीके वर्तनोंको बिना सँभाले, खिळकी, दर्वाज़ेको खोले ही छोळ गयन-आसनके लिये पूछे ( सँभलवाय) विना चले जाते थे । लकळी-मिट्टीका वर्तन नष्ट हो जाता था। शयन-आसन अ-रक्षित होता था। जो वह अल्पेच्छ० भिक्षु थे, वह हैरान० होते थे-००।- "नो भिक्षुओ ! गमिक भिक्षुओंके व्रतको वतलाता हूँ, जैसे कि गमिक भिक्षुओंको वर्तना चाहिये। भिक्षुओ ! गमिक भिक्षुको लवळी-मिट्टीके वर्तनको सँभालकर, खिळकी दर्वाजोंको बन्दकर शयन-आसन के लिये पूट कर जाना चाहिये। यदि भिक्षु न हो तो श्रामणेरमे पूछना चाहिये, यदि श्रामणेर न हो तो आगमिकः (:आराम सेवक) को पूछना चाहिये। यदि भिक्षु हो, न श्रामणेर ही, न आरामिक ही; तो चार पत्थरोंपर चारपाईको बिछाकर, चारपाईपर, चारपाई, चौकीपर चौकी रखकर पर गवन-आरानको जमा करे। लकळी-मिट्टीके दर्तनोंको मॅभालकर, खिळकी-दर्वाजोंको बन्द करके जाना चाहिये । यदि विहार चूता है, तो नमर्थ होनेपर छा देना चाहिये, या (उसके लिये) यत्न करना चाहिये -जिनमें विहार टा जाये। यदि ऐना हो सके तो टीक., यदि न हो सके, तो जिस स्थानपर न चूता हो का चार पत्यगोपर चारपाईको विछाकर, बिटकी-दर्वाज़ोंको बन्द करके जाना चाहिये । यदि मारा ही किसर ना हो. तो चदि समर्थ हो. तो गवन-आमनको गांवमें ले जाना चाहिये, या प्रयत्न करना चाहिये, जिसन-आसन गांव चला जाये । यदि ऐना करनेको मिले तो ठीक, न मिले, नो चार पत्थरों 7 को शिकार लगाली-मिट्टीव वर्ननोंको नभाल, पाम या पनेने दांककर जाना चाहिये, for frभाग को बन जाये। निश्शो ' यह गमिक निक्षओंका दत है; ।' 'देखो . ४.८ : टेलो.पर। यात्रापर जानेदाला।