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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५६७

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४९८ ] ४-चुल्लवग्ग [ ८६११२ जाना) कर रहे हैं। उपस्थान-शाला, मंडप या वृक्ष-छाया जहाँ आवासिक भिक्षु प्रतिक्रमण कर रहे हों, वहाँ जाकर एक ओर पात्र रखकर, एक ओर चीवर रखकर योग्य आसन ले बैठना चाहिये। पीनेके (पानी) और इस्तेमालके (पानी) को पूछना चाहिये--कौन पीनेका (पानी) है, कौन इस्तेमालका है ? यदि पीनेके (पानी) का प्रयोजन हो तो पानीय लेकर पीना चाहिये। यदि इस्तेमालके (पानी)का प्रयोजन हो तो...उसे लेकर पैर धोना चाहिये। पैर धोते वक्त एक हायने पानी डालना चाहिये, दूसरे हाथसे पैर धोना चाहिये। उसी हाथसे पानी डालना और उमी हायसे पैर धोना न करना चाहिये। जूता पोंछनेके कपळेको माँगकर जूता पोंछना चाहिये। जूता पोंछते वक्त पहिले सूखे कंपळेसे पोंछना चाहिये, पीछे गीलेसे । जूता पोंछनेके कपळेको धोकर एक ओर रख देना चाहिये । यदि आवासिक भिक्षु (अपनेसे भिक्षु होनेमें) वृद्ध हो, तो अभिवादन करना चाहिये । यदि नवक (अपनेसे कम समयका भिक्षु) हो तो अभिवादन करवाना चाहिये। (अपने लिये) शयन-आसन (कहाँ है) पूछना चाहिये। गोत्रर (=भिक्षाके ग्राम) पूछना चाहिये, अ-गोचर०, शैक्ष सम्म त कुलोको०, पाखानेका स्थान (= बच्चट्ठान) ०, पेसावका स्थान (=पस्सावट्ठान), पीनेका (पानी), बोनेका पानी (=परि- भोजनीय) ०, कत्तरदंड ( वैशाखी)०, संघके कतिक संस्थान (स्थानीय नियमकी बातें)०, (कतिक-संस्थानमें) किस समय प्रवेश करना चाहिये, किस समय निकलना चाहिये (--पूछना चाहिये)। यदि विहार (बहुत समयसे)खाली रहा हो, तो किवाळको खटखटाकर थोळी देर ठहरना, घटिका (घरन्) को उघाळ, किवाळको खोल बाहर खळे ही खळे देखना चाहिये। यदि विहार साफ न हो, चारपाईपर चाँदी रक्खी हो, चौकीपर चौकी रक्खी हो; ऊपर शयनासन (=शय्या, आसन) जमा कर दिया गया हो; तो यदि कर सकता हो, तो साफ करना चाहिये। "विहार साफ करते वक्त पहिले भूमिके फर्शको हटाकर एक ओर रखना चाहिये। (चारपाईके पाये) के ओरको हटाकर एक ओर रखना चाहिये। तकिये-गद्दे को० । आसन, विछौनेकी चद्दरको । चारपाईको नवाकर विना रगळे ठीकसे विना किवाळसे टकराये ठीकसे निकालकर एक ओर रखना चाहिये। चौकी (=पीठ) को नवाकर बिना रगळे, विना किवाळसे टकराये, ठीकसे निकालकर एक ओर रखना चाहिये। ०२ सिरहानेके पटरे (=ओठंगनेके पटरे) को धूपमें तपा, साफकर ले आकर उसके स्थानपर रखना चाहये । पात्र-चीवरको रखना चाहिये । पात्रको रखते वक्त एक हाथमें पात्र ले, दूसरे हाथसे नीचे चारपाई या चौकीको टटोलकर पात्र रखना चाहिये। विना ढंकी भूमिपर पात्र नहीं रखना चाहिये । चीवरको रखते वक्त एक हाथमें चीवर ले, दूसरे हाथसे चीवर (टाँगने) के वाँस, चीवर (टाँगने) की रस्सीको झाळकर पहली ओर पिछले छोर और उरली ओर शिरको करके चीवर रखना चाहिये। “यदि धूलि लिये पुरवा हवा चल रही हो,' यदि पाखानेकी मटकीमें पानी न हो, तो पानी भर कर रखना चाहिये। "भिक्षुओ ! यह नवागन्तुक भिक्षुओंका व्रत है, जैसे कि आगन्तुक भिक्षुओंको वर्तना चाहिये।" I (२) आवासिकके व्रत उस समय आवासिक भिक्षु आगन्तुक भिक्षुओंको देख नहीं आसन देते थे, न पैर धोनेका जल (=पादोदक), न पादपीठ, न पादकठलिक (-पैर घिसनेकी लकळी) रखते थे। न अगवानी करके १परम श्रद्धालू किन्तु अत्यन्त दरिद्र कुल, जिनके कष्टको ख्यालकर भिक्षुको उनके घर भिक्षा माँगनेके लिये नहीं जाना चाहिये। देखो महावग्ग १९२।१ (पृष्ठ १०२) ।