पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५७१

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५०२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ८३१ पात्र चाट चाटकर नहीं खाना चाहिये । ओठ चाट चाटकर नहीं खाना चाहिये। जूठ लगे हाथसे पानीका बर्तन नहीं पकळना चाहिये। जब तक सब न खा चुके, (संघके) स्थविरको पानी नहीं लेना चाहिये। पानी दिये जाते वक़्त दोनों हाथोंसे पात्रको पकळकर पानी लेना चाहिये। "नवा कर विना घेसे पात्रको धोना चाहिये । यदि पानी फेंकनेका वर्तन हो, तो नवाकर उसे वर्तनमें डाल देना चाहिये । उदक प्रतिग्राहक (=पानी छोळनेके बर्तन)को नहीं भिगोना चाहिये । यदि उदक-प्रतिग्राहक न हो, तो नवाकर भूमिपर पानी डाल देना चाहिये ; जिसमें कि पायके भिक्षुओंपर पानीका छींटा न पळे । संघाटीपर पानीका छींटा न पळे । "जूठे सहित पात्रके धोवनको घरके भीतर नहीं फेंकना चाहिये । लौटते वक़्त नवक भिक्षुओंको पहिले लौटना चाहिये, स्थविर भिक्षुओंको पीछे । सुप्रतिच्छन्न हो (गृहस्थके) घरमें जाना चाहिये । ० निहुरे नहीं घरके भीतर जाना चाहिये । "भिक्षुओ! भोजनकी पाँतके लिये भिक्षुओंका यह व्रत है, जैसे कि भिक्षुओंको भोजनके समय वर्तना चाहिये ।" प्रथम भाणवार (समाप्त) ॥१॥ १ - ३-भिक्षाचारी और श्रारण्यकके कर्त्तव्य (१) भिक्षाचारी (=पिंडचारिक)के व्रत उस समय पिंडचारिक भिक्षु विना ठीकसे पहिने-टँके बुरी सूरतमें पिंडचार (=भिक्षाचार) करते थे। विना जाने भी घरके भीतर प्रवेश करते थे। विना जाने निकलते थे। वळी जल्दी जल्दी घरमें प्रवेश करते थे, वळी जल्दी (घरसे) निकलते थे। वहुत दूर भी खळे होते थे, बहुत समीप भी खड़े होते थे। बहुत देर तक (भिक्षाके लिये द्वारपर) खळे रहते थे, बहुत जल्दी भी लौट पळते थे। एक पिडचारिक पुरुपने विना जाने घरके भीतर प्रवेश किया। द्वार समझते हुए वह एक कमरे में चला गया। उस कमरेमें (कोई) स्त्री नंगी उतान लेटी हुई थी। उस भिक्षुने उस स्त्रीको नंगे उतान लेटे देखा । देखकर यह द्वार नहीं है, कमरा है-(सोच) उस कमरेसे निकल आया । उस स्त्रीके पतिने उसे.. .नंगे उतान लेटी देखा। इस भिक्षुने मेरी स्त्रीको दूपित किया-(सोच) उसने उस भिक्षुको पकळकर पीटा। तब उस स्त्री ने (मारकी) आवाज़से जागकर उस पुरुपसे यह कहा- "किसलिये आर्य! तुम इस भिक्षुको पीटते हो?" "इस भिक्षुने तुझे दूपित किया है।" "आर्य ! इस भिक्षुने मुझे दूपित नहीं किया। इस भिक्षुने कुछ नहीं किया।"- (कह) उस भिक्षुको छुळवा दिया । तव उस भिक्षुने आराममें जाकर यह बात भिक्षुओंसे कही। अल्पेच्छ० भिक्षु० । ० ।- "देखो पिछले पृष्ठ (५००) पर। भिक्षाके लिये गाँवमें घूमनेवाला ।