पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५७२

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८९३२ ] आरण्यकके व्रत [ ५०३ "तो भिक्षुओ! पिंडचारिक भिक्षुओंके व्रतका विधान करता हूँ, जैसे कि पिंडचारिक भिक्षुओंको वर्तना चाहिये। भिक्षुओ! पिंडचारिक भिक्षुको ग्राममें प्रवेश करते समय तीनों मंडलोंको ढाँकते परिमंडल (चीवर) पहिन, कमरवन्दको बाँध चौपेतकर संघाटीको पहिन मुद्धी दे, धोकर पात्र ले ठीक से-विना जल्दीके गाँवमें प्रवेश करना चाहिये। "निहुरे नहीं घरके भीतर जाना चाहिये । “घरमें प्रवेश करते समय-इससे प्रवेश करूँगा, इससे निकलूंगा—यह सोच लेना चाहिये। बहुत जल्दीमें नहीं प्रवेश करना चाहिये । "बहुत जल्दीमें नहीं निकलना चाहिये। न बहुत दूर खळा होना चाहिये । न बहुत समीप खळा होना चाहिये। न बहुत देर तक खळा रहना चाहिये। न बहुत जल्द लौट जाना चाहिये । "खळे रहते समय जानना चाहिये, कि (घरवाली) भिक्षा देना चाहती है, या नहीं देना चाहती। यदि (हाथका) काम छोळ देती है, आसनसे उठती है, कलछी पकळती है, वर्तन पकळती या रखती है; तो देना चाहती.सी है (सोच) खळा रहना चाहिये। "भिक्षा देते वक्त वायें हाथसे संघाटी हटाकर, दाहिने हाथसे पात्रको निकाल, दोनों हाथोंसे पात्रको पकळ, भिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। "भिक्षा देनेवालीके मुंहकी ओर नहीं देखना चाहिये। "न्याल करना चाहिये, सूप (दाल) को देना चाहती है या नहीं देना चाहती। यदि कलछी पवळती है, बर्तनको पकळती या रखती है, तो देना चाहती है, (सोच) खळा रहना चाहिये। "भिक्षा दे दी जानेपर संघाटीसे पात्रको ढांक, अच्छी तरह-विना जल्दीके लौटना चाहिये। "सुप्रतिच्छन्न हो घरके भीतर जाना चाहिये । ०3 निहुरे नहीं घरके भीतर जाना चाहिये। "जो गांवसे भिक्षा लेकर पहिले लौटे, उसे आसन बिछाना चाहिये, पादोदक पाद-पीट, पाद- वाटलिक रचने चाहिये । कूळे (अववकार) की थाली धोकर रखना चाहिये । पीनेके और धोनेके (पानी) को रखना चाहिये। "जो गाँवमे भिक्षा लेकर पीछे लौटे, (वह) भोजन (मेंसे जो) वचा हो, यदि चाहे, तो खाये, यदि नहीं चाहे तो (ऐसे) स्थानमें, जहां हरियाली न हो छोळ दे, या प्राणीरहति पानीमें छोळ दे। (वह) आसनोको समेटे। पीनेको पानीको समेटे । कळेकी थाली धोकर समेटे । खानेकी जगहतर शालू दे । पानी पळे, नेके पळे. या पासानेके घळेमें जिले खाली देखें, उने (भरकर) रख दे। यदि वह उससे होने लायक नहीं हो, तो हाथके इशारेने, हाथके संकेतसे दूसरोंको बुलाकर. पानीके पनो (भरकर) रसदा दे। उसके लिये वाग्-युद्ध नहीं करना चाहिये। "भिक्षशो ! यह पिडचारिक निक्षुओंके दूत हैं, ।"4 (२) आरण्यक व्रत जमार वतने निक्षु अप्न विहार करते थे। वह न पीने या धोनेके (पानी)को उपस्थित पानाजी महिने थे। न अरपी नाथः । न नक्षत्रों (=नागें) के मार्गको जानते देखो पो ८१ (पृष्ट ५००.) ।