पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५७८

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ह-प्रातिमोक्ष-स्थापन स्कन्धक १ --किसका प्रातिमोक्ष स्थगित करना चाहिये ? २--नियम-विरुद्ध और नियमानुसार प्रातिमोक्ष स्थगित करना । ३--अपराध योंही स्वीकारना, और दोषारोप । हु१-किसका प्रातिमोक्ष स्थगित करना चाहिये १ . - -श्रावस्ती (१) उपोसथमें पापो भिक्षु उस समय त्रुद्ध भगवान् श्रावस्तीमें मृ गा र माता के प्रासाद पूर्वा ग म में विहार करते थे। उस समय भगवान् उपोसथके दिन भिक्षु-मंधके साथ बैठे थे। तव आयुष्मान् आ नन्द रात चली जानेपर , प्रथम याम बीत जानेपर उत्तरासंगको एक कंधेपर कर जिधर भगवान् थे, उधर हाथ जोळ भगवान्ने यह बोले- "भन्ते ! रात चली गई, पहिला याम बीत गया। भिक्षु-संघ देरसे बैठा है । भन्ते ! भगवान् भिक्षुओंके लिये प्रातिमोक्ष-उद्देश (=0 पाठ) करें।" ऐसा कहनेपर भगवान् चुप रहे। (और) रात चली जानेपर विचले यामके भी बीत जानेपर दूसरी बार आयुष्मान् आनन्द० भगवान्से यह बोले- "भन्ते ! रात चली गई। विचला याम भी बीत गया। भिक्षु-संघ देरसे बैठा है । भन्ते ! भगवान् भिक्षुओंके लिये प्रातिमोक्ष-उद्देश करें।" ऐसा कहनेपर भगवान् चुप रहे। (और भी) रात चली जानेपर अन्तिम यामके भी बीत जाने पर नीमरी वार आयुप्मान् आनन्द० भगवान्से यह वोले- "भन्ते ! रात चली गई। अन्तिम याम भी बीत गया। अरुण निकल आया, नन्दीमुखा (उपा) रात है । भिक्षु-संघ देरसे बैठा है । भन्ते ! भगवान् भिक्षुओंके लिये प्रातिमोक्ष-उद्देश करें।" "आनन्द ! (यह) परिपद् गुद्ध नहीं है।" नव आयुप्मान् म हा मौद्गल्यायनको यह हुआ--'किस व्यक्तिके लिये भगवान्ने यह कहा-- आनन्द ! परिपद् गृद्ध नहीं है, तब आयुष्मान् महामौद्गल्यायनने (अपने) चित्तमें ध्यान करते भिक्षु- मंघको देन्या; और (नव) आयुप्मान् महामौद्गल्यायनने उस पापी, दुःशील, अ-शुचि, मलिन-आचारी, छिपे कर्म वाले श्रमण होनेके दावेदार अ-श्रमण होते, ब्रह्मचारी न होते ब्रह्मचारी होने का दावा कन्नेवाले भीतर-मळे, (पीव) भरे, कलप म्प उस व्यक्तिको संबके बीचमें वैटे देखा। देख कर जहां वह पुराप था वहां गये, जाकर उस पृष्पम यह बोले-- "आवुस ! उट, भगवान्ने तुझे देख लिया। (अव) नेरा भिक्षुओंके माथ वास नहीं हो सकता।" ना कहनेपर वह पुरुप चुप रहा। ६११ 1 ५०९