पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५८३

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५१४ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९२२ (उसकी) आचार-भ्रष्टता देखी, सुनी या शंकित होती है; (१०) न (उसकी) दृष्टि-भ्रष्टना देखी, सुनी या शंकित होती है।--यह दस प्रातिमोक्ष-स्थगित करने अ-धार्मिक हैं। (२) नियमानुसार प्रातिमोक्ष-स्थगित करना "कौनसे दस प्रातिमोक्ष-स्थगितकरने धार्मिक हैं ?-(१) पागजिक-बोपी उस परिषद् (=वैठक) में बैठा होता है; (२) या पाराजिककी बात वहाँ चलती होती है; (३) शिक्षाका प्रत्यान्यान करनेवाला उस परिपद्में बैठा होता है; (४) या शिक्षाके प्रत्याभ्यानकी बात वहां चलती होती है। (५) धार्मिक सामग्रीके लिये (वह भिक्षु) जानेवाला होता है; (६) धार्मिक सामग्रीका प्रन्यादान करता है; (७) धार्मिक सामग्रीके प्रत्यादानकी बात वहाँ चलती होती है; (८) (उसकी) गील-भ्रष्टता देखी, सुनी या शंकित होती है; (९) (उसकी) आचार-भ्रष्टना देवी, मुनी या शंकित होती है; (१०) (उसकी) दृष्टि-भ्रष्टता देखी सुनी या शंकित होती है । यह दस प्रातिमोक्ष स्थगित करने वामिक हैं। 15 (क) पाराजिक दोषी परिषदमें हो-- (क) “कैसे पाराजिक-दोपी उस पग्पिद् (=बैठक) में बैठा होता है ?--(१) यहाँ भिक्षुओ! जिन आकारों लिंगों-निमित्तोंसे पाराजिक दोप (धर्म) का दोषी होता है, उन आकारों= लिंगों-निमित्तोंसे भिक्षुने (स्वयं) उस भिक्षुको पाराजिक दोप करते देखा। (२) भि ने पाराजिक दोषको करते (स्वयं) नहीं देखा, किन्तु दूसरे भिक्षुने (उस) भिक्षुको कहा है-'आवुस ! इन नामवाले भिक्षुने पाराजिक दोषको किया'। (३) न भिक्षुने पाराजिक दोपको करते (स्वयं) देखा, नहीं दूसरे भिक्षुने (उस) भिक्षुसे कहा-'आवुस ! इस नामवाले भिक्षुने पाराजिक दोपको किया'; बल्कि उनीने (उस) भिक्षुसे कहा--आवुस ! मैंने पाराजिक दोप किया' । तो भिक्षुओ! इच्छा होनेपर (वह) भिक्षु उस (१) देखे, (२) उस सुने, और (३) उस गंकासे चतुर्दशी या पूर्णमासीके उपोसथके दिन उस व्यक्तिके उपस्थित होनेपर संघके बीच कह -'भन्ते ! संघ मेरी मुने, इस नामवाले भिक्षुने पाराजिक दोष किया है, उसके प्रातिमोक्षको स्थगित करता हूँ।' उसके उपस्थित न होनेपर प्रातिमोक्षका उद्देश करना चाहिये। (वह) प्रातिमोक्ष-स्थगित करना धार्मिक (=नियमानुकूल) है। 16 "भिक्षुके प्रातिमोक्ष स्थगित कर देनेपर, राजा, चोर, आग, पानी, मनुष्य, अ-मनुप्य (=भूत- प्रेत), जंगली जानवर, सरीसृप (=साँप आदि), प्राणसंकट या धर्मसंकट-इन आठ अन्तरायों (=विघ्नों) में से किसी विघ्नके कारण यदि परिषद् ( बैठक) उठ जावे; तो भिक्षुओ! इच्छा होनेपर भिक्षु उस आवासमें या दूसरे आवासमें उस व्यक्तिके उपस्थित होनेपर संघके बीच कहे-'भन्ते! संघ मेरी सुने, इस नामवाले भिक्षुके पाराजिककी बात चल रही थी, वह बात अभी ते न हो पाई है। यदि संघ उचित समझे तो संघ उस बात (=वस्तु, मुकदमे) का विनिश्चय (=फैसला) करे।' इस प्रकार यदि (अभीष्ट) प्राप्त हो सके, तो ठीक नहीं तो अमावास्या या पूर्णिमाके उपोसथके दिन उस व्यक्तिके उपस्थित होनेपर संघके बीच कहे-'भन्ते ! संघ मेरी सुने-इस नामके भिक्षुके पाराजिककी कथा चल रही थी, उस बातका फैसला नहीं हुआ। उसके प्रातिमोक्षको स्थगित करता हूँ। उसली उपस्थितिमें प्रातिमोक्षका उद्देश नहीं करना चाहिये ।' (यह) प्रातिमोक्ष स्थगित करना धार्मिक है। 17 (ख) शिक्षा - प्र त्या ख्या न क र्ता प रि प द में हो—“कैसे शिक्षाका प्रत्याख्यान करनेवाला उस परिपझें बैठा होता है ? --(१) यदि भिक्षुओ ! • उन आकारों ० से भिक्षुने (स्वयं) उत भिक्षुको शिक्षाका प्रत्याख्यान करते देखा। (२) भिक्षुने (स्वयं) शिक्षाका प्रत्याख्यान करते नहीं देखा किन्तु दूसरे भिक्षुने उस भिक्षुसे कहा है-'आवुस ! इस नामवाले भिक्षुने शिक्षा का प्रत्याख्यान किया है। (३) न ० स्वयं देखा, नहीं दूसरे भिक्षुने (उस) भिक्षुसे कहा-०; बल्कि उसीने (उस) भिक्षुसे कहा-