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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५८६

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०इस ९९३१२] दोपारोपके लिये अपेक्षित वातें [ ५१७ बखानते हैं; वैसे धर्मको मैंने बहुत सुना, धारण किया, वचनसे परिचित किया (=समझा) मनसे जाँचा, दृष्टि से अच्छी तरह समझा है न? यह धर्म मुझमें है या नहीं? यदि उपालि ! भिक्षु बहुश्रुत ० नहीं हैं; तो उसे कहनेवाले होंगे–पहिले आयुष्मान् आ ग म को पढ़ें...(५) और फिर उपालि प्रकार प्रत्यवेक्षण करना चाहिये-(भिक्षु भिक्षुणी) दोनोंके प्रा ति मोक्षों को मैनै विस्तारके साथ हृदयस्थ किया, सविभक्त किया, सुप्पवत्ती, सूत्रों और अनुव्यंजनोंसे अच्छी तरह विनिश्चित किया है न ? यह धर्म मुझमें है या नहीं? यदि उपालि ! भिक्षुने दोनों प्रातिमोक्षोंको विस्तारके साथ नहीं हृदयस्थ किया ० अच्छी तरह नहीं विनिश्चित किया है; तो-इसे भगवान् ने कहाँपर कहा ?-- (पूटनेपर) उत्तर न दे सकेगा। फिर उसे कहनेवाले होंगे--पहिले आयुष्मान् विनयको पढ़ें। उपालि ! दोषारोपक भिक्षुको दूसरेपर दोपारोप करनेकी इच्छा होनेपर यह पाँच बातें (पहिले) अपने भीतर प्रत्यवेक्षण करके दूसरेपर दोषारोपण करना चाहिये।" 25 २-"भन्ते! दोषारोपक भिक्षुको दूसरेपर दोषारोप करनेकी इच्छा होनेपर कितनी बातों (धर्मो) को अपने भीतर स्थापितकर दूसरेपर दोपारोप करना चाहिये ?" "उपालि ! दोषारोपक भिक्षुको दूसरेपर दोषारोप करनेकी इच्छा होनेपर पाँच बातोंको अपने भीतर स्थापितकर दूसरेपर दोषारोप करना चाहिये--(१) समयपर बोलूंगा, बेसमय नहीं; (२) यथार्थ बोलूंगा, अयथार्थ नहीं; (३) मधुरताके साथ बोलूँगा, कठोरताके साथ नहीं; (४) सार्थक बोलूंगा, निरर्थक नहीं; (५) मैत्रीपूर्ण चित्तसे बोलूंगा, भीतर द्वेष रखकर नहीं। उपालि ! दोपारोपक भिक्षुको० इन पाँच बातोंको अपने भीतर स्थापितकर दूसरेपर दोपारोप करना चाहिये।" 26 3-“भन्ते ! अधर्मसे दोषारोप करनेवाले भिक्षुको कितने प्रकारसे (=विप्रतिसार) पछतावा लाना चाहिये?" "उपालि ! अधर्मसे दोषारोप करनेवाले भिक्षुको पाँच प्रकारसे पछतावा लाना चाहिये-- (१) आयुष्मान् असमयमे दोषारोप करते हैं समयसे नहीं, आपका पछतावा व्यर्थ । (२) ०अयथार्थ वोलते हैं, यथार्थ नहीं० । (३) ० कठोरताके साथ दोषारोप करते हैं, मधुरताके साथ नहीं०। (४) ०निरर्थक दोषारोप करते हैं, सार्थक नहीं० । (५) भीतर द्वेष रखकर दोषारोप करते हैं, मैत्रीपूर्ण चित्तसे नहीं० । उपालि ! अधर्मसे दोषारोप करनेवाले भिक्षुको पाँच प्रकारसे विप्रतिसार (=पछ- तावा) दिलाना चाहिये। सो क्यों ? जिसमें दूसरे भिक्षु भी असत्य दोषारोप करनेकी इच्छा न करें।" 27 ४-'भन्ते! अधर्मपूर्वक दोषारोप किये गये भिक्षुको कितने प्रकारसे अ-विप्रतिसार (न पछतावा) धारण कराना चाहिये ?" "उपालि ! • पाँच प्रकारसे अ-विप्रतिसार धारण करना चाहिये-(१) बेसमय आयुष्मान् पर दोपारोप किया गया, समयसे नहीं, आपको विप्रतिसार (=पछतावा) नहीं करना चाहिये। (२) असत्यमे आयुप्मान्पर दोषारोप किया गया, सत्यसे नहीं, ०। (३) कठोरतासे०, मधुरतासे नहीं, ० । (४) निरर्थकसे०, सार्थकसे नहीं,०। (५) भीतर द्वेष रखकर० मैत्रीपूर्ण चित्तसे नहीं, । ऐसे पाँच प्रकारने अ-विप्रतिसार कराना चाहिये।" 28 ५-"भन्ते! धर्मपूर्वक दोषारोप करनेवाले भिक्षुको कितने प्रकारसे अविप्रतिसार धारण करना चाहिये ?" "उपालि ! • पाँच प्रकारसे ०-(१) समयसे आयुप्मान्ने दोपारोप किया, वेसमयसे नहीं, तुम्हें पछताना नहीं चाहिये। (२) सत्यसे०, अ-सत्यमे नहीं, ०। (३) मधुरतासे०, कठोरतासे नहीं, ० । (४) नार्थकमे०, निरर्थकने नहीं, ०। (५) मैत्रीपूर्ण चित्तमे०, भीतर द्वेप रखकर नहीं, तुम्हें पछताना