पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९

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३-अनियत (१८-१६) आयुष्मानो ! यह दो अपराध अनियत कहे जाते हैं- (१) मैथुन १-यदि कोई भिक्षु किसी स्त्रीके साथ अकेले, (ऐसे) एकान्त (=गुप्त ) आसन वाले (मैथुन) कर्मके योग्य (स्थान)में बैठे जहाँ उसे श्रद्धालु उपासिका पाराजिक, संघादिसेस, या पाचित्तिय इन तीन बातों से किसी एककी बात चलाये, (तो) वैठना स्वीकार करने पर ( उस भिक्षुको ) पाराजिक, संघादिसेस, पाचित्तिय इन तीन बातोंमेंसे जिसे वह विश्वास- पात्र उपासिका बतलाये उसी (अपराध )का (अपराधी ) उसे बनाना चाहिये। यह अपराध (पाराजिक, संघादिसेस पाचित्तिय तीनोंमेंसे एकमें नियत न रहनेसे ) अनियत कहा जाता है। २–चाहे आसन गुप्त न हो और न (मैथुन) कर्मके योग्य हो; किन्तु (वहाँ) स्त्रीके साथ अनुचित बातें की जा सकती हों; (तो)जो (जहाँ पर कि) भिक्षु वैसे आसनपर किसी स्त्रोके साथ अकेले एकान्तमें वैठे । उसको देखकर विश्वास-पात्र उपासिका संघादिसेस और पाचित्तिय इन दो बातोंमेंसे किसी एककी बात चलाये; (तो) वैठना स्वीकार करने पर ( उस भिक्षुको ) संघादिसेस और पाचित्तिय इन दो वातोंमेंसे जिसका (दोषी) वह विश्वास-पात्र उपासिका बतलाये उसी (अपराध)का ( अपराधी ) उसे बनाना चाहिये । यह अपराध भी ( संघादिसेस, पाचित्तिय दोनोंमेंसे किसीमें नियत न रहनेसे ) अनियत है। अनियत समाप्त ॥३॥ [ 8३।१-२