पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९८

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1 O . १०६४।१२ ] भिक्षुको ढकेलनेका निषेध [ ५२९ "०भिक्षुणियोंको मुखपेर लेप नहीं करना चाहिये, मुखकी मालिश नहीं करनी चाहिये, मुख पर चूर्ण नहीं डालना चाहिये, मुखको मैनसिलसे लांछित नहीं करना चाहिये, अंगराज नहीं लगाना चाहिये, दुक्कट०।" 48 (९) अंजन देने, नाच तमाशा, दूकान व्यापार करनेका निषेध उस समय पड्वर्गी या भिक्षुणियाँ अपांग (=आँजन) करती थीं, (कपोलपर) विशेपक (=चिह्न) करती थीं। झरोखेसे झांकती थीं। द्वारपर शरीर दिखाती खळी होती थीं। समज्या (=नाच-नाटक) कराती थीं। वेश्या बैठाती थीं। दूकान लगाती थीं। पान-आगार (=शरावखाना) चलाती थीं। मांसकी दूकान करती थीं। सूदपर (रुपया) लगाती थीं । व्यापारमें (रुपया) लगाती थीं । दास रखती थीं। दासी रखती थीं। नौकर (=कर्मकर) रखती थीं। नौकरानी रखती थीं। तिर्यग्योनि- वालोंको रखती थीं। हर्रा पाक (पंसारीकी दूकान) पसारती थीं, नमतक (=वस्त्र-खंड) धारण करती थीं। लोग हैरान० होते थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ (स्त्रियाँ) ! "०भिक्षुणियोंको आँजन नहीं करना चाहिये,० नमतक नहीं धारण करना चाहिये; ० दुक्कट०।" 49 (१०) बिलकुल नीले, पीले आदि चीवरोंका निषेध उस समय षड् व र्गी या भिक्षुणियाँ सारे ही नीले १ चीवरोंको धारण करती थीं, सारे ही पीले०, सारे ही लाल०, सारे ही मजीठ०, सारे ही काले०, सारे ही महारंगसे रंगे, सारे ही हल्दीसे रेंगे चीवरोंको धारण करती थीं। कटी किनारीवाले०, लम्बी किनारीवाले०, फूलदार किनारीवाले०, फण (की शकल) की किनारीवाले चीवरोंको धारण करती थीं। कंचुक धारण करती थीं, तिरीटक (=वृक्षकी छाल) धारण करती थीं । लोग हैरान० होते थे--जैसे कामभोगिनी गृहस्थ स्त्रियाँ !" भगवान्से यह बात कही।- "०भिक्षुणियोंको सारे ही नीले चीवरोंको नहीं धारण करना चाहिये, सारे ही पीले०,०, तिरी- टक नहीं धारण करना चाहिये, ०दुक्कट ०।" 50 (११) भिक्षुणियोंके दायभागी उस समय एक भिक्षुणीने मरते समय यह कहा-मेरा सामान (=परिष्कार) संघका हो। वहाँ भिक्षु और भिक्षुणियाँ दोनों विवाद करती थीं—'हमारा होता है, हमारा होताहै।' भगवान्से यह बात कही।- "यदि भिक्षुओ ! भिक्षुणीने मरते वक्त कहा हो-मेरा सामान संघका हो; तो भिक्षु-संघ उसका मालिक नहीं, भिक्षुणी-संघका ही वह होता है । यदि......शिक्षमाणाने ०। यदि श्रामणेरीने। यदि भिक्षुओ ! भिक्षुने मरते वक्त कहा हो-मेरा सामान संघका हो; तो भिक्षुणी-संघ उसका मालिक नहीं, भिक्षु-संघका ही वह होता है । यदि श्रामणेरने०। यदि उपासकने०। यदि उपासिकाने० भिक्षु-संघका ही वह होता है।" SI (१२) भिक्षुको ढकेलनेका निपेध उस समय एक भूतपूर्व पहलवान स्त्री (=मल्ली) भिक्षुणियोंमें प्रवजित हुई थी। वह सळकमें दुर्बल भिक्षुको देदि अंसकूट (=दाहिना कंधा खुला जाकट) से प्रहार दे गिरा देती थी। भिक्षु हैरान होते थे-कैने भिक्षुणी भिक्षुको प्रहार देगी। भगवान्से यह बात कही।- "मिलाओ महावग्ग, चीवरक्खंधक ८ (पृष्ठ ३५३) । ६७