पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९९

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५३० ] ४-चुल्लवग्ग [ १०६४।१४ "भिक्षुओ ! भिक्षुणी भिक्षुको प्रहार न देवे, दुवकट ०।० अनुमति देता हूँ, भिक्षुणीको भिक्षु देख दूर हट (उसे) मार्ग देना।" 52 (१३) भिक्षुको पात्र खोलकर दिखलाना चाहिये १-उस समय एक स्त्रीका पति परदेश चला गया था, और उसे जाग्ने गर्भ हो गया। उसने गर्भ गिराकर (बरावर) घर आनेवाली भिक्षुणीसे यह कहा अच्छा हो आयें ! इस गर्भको पात्रमें वाहर ले जाओ। तब वह उस भिक्षुणीके उस गर्भको पात्रमें रब संघाटीसे ढांक चली गई। उस समय एक पिंडचारिक (=निमंत्रण न ले सदा भिक्षा मांगकर खानेवाला) भिक्षुने प्रतिना की थी- मैं जो भिक्षा पहिले पाऊँगा, उसे भिक्षु या भिक्षुणीको बिना दिये नहीं खाऊँगा। तब उस भिक्षुने उस भिक्षुणीको देख यह कहा- "हन्त भगिनी! भिक्षा स्वीकार कर।" "नहीं, आर्य !" दूसरी बार भी०। तीसरी बार भी उस भिक्षुने उस भिक्षुणीको यह कहा- "हन्त भगिनी ! भिक्षा स्वीकार कर ।" "नहीं, आर्य !" "भगिनी ! मैंने समारतन (=प्रतिज्ञा)की है, मैं जो भिक्षा पहिले पाऊँगा, उसे भिक्षु या भिक्षुणीको बिना दिये नहीं खाऊँगा। हन्त, भगिनी ! भिक्षा स्वीकार कर।" तव उस भिक्षु-द्वारा अत्यन्त वाध्य किये जानेपर उस भिक्षुणीने पात्र निकालकर दिखला दिया- "देखो आर्य ! पात्रमें गर्भ है। मत किसीसे कहना।" तव वह भिक्षु हैरान होता था -कैसे भिक्षुणी पात्रमें गर्भ ले जायेगी। तब उस भिक्षुने भिक्षुओंको यह बात कही। जो वह अल्पेच्छ० भिक्षु०।०- "० भिक्षुणीको पात्रमें गर्भ नहीं ले जाना चाहिये, दुक्कट ०।० अनुमति देता हूँ भिक्षुको देख कर भिक्षुणीको पात्र निकालकर दिखलानेकी ।" 53 २-उस समय पड्वर्गीया भिक्षुणिया भिक्षु देख उलटकर पात्रकी पेंदीको दिखलाती थीं। भिक्षु हैरान० होते थे। भगवान्से यह बात कही- "० भिक्षुणियोंको भिक्षु देख उलटकर पात्रकी पेंदी नहीं दिखलानी चाहिये, दुक्कट ०1० अनुमति देता हूँ, भिक्षुणीको भिक्षु देख पात्रको उघाळकर दिखलानेकी, और जो पात्रमें भोजन हो, लिये निमंत्रित करनेकी।" 54 (१४) पुरुप-व्यंजन देखनेका निषेध उस समय श्रावस्तीमें सळकपर पुरुप व्यंजन (=लिंग) फेंका हुआ था। भिक्षुणियाँ बड़े गौरसे देखने लगीं। मनुष्योंने ताना (=उक्कुट्ठि) मारा। वह भिक्षुणियाँ (लज्जासे) चुप मूक हो गई। तब उन भिक्षुणियोंने उपश्रय (=आश्रम) में जा भिक्षुणियोंसे यह बात कही। जो वह अल्पेच्छ० भिक्षुणियाँ थीं, वह हैरान ० होती थीं-कैसे भिक्षुणियाँ पुरुष-व्यंजनको गौरसे देखेंगी !! तव उन भिक्षुणियोंने भिक्षों से यह बात कही। भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही।- "० भिक्षुणियोंको पुरुप-व्यंजन नहीं गौरसे देखना चाहिये, दुक्कट ०। उसके 11 55