पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६१५

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५४६ 1 ४-चुल्लवग्ग [ ११४१ "आवुस ! स्थविरोंने धर्म और विनयको सुन्दर तोरसे मंगायन किया है । तो भी जैसा मैंने भगवान्के मुंहसे सुना हे, मुखसे ग्रहण किया है, वैसा ही में धारण करूँगा।" ६४-उदयनको उपदेश और छन्नको ब्रह्मदंड तब आयुप्मान् आनन्दने स्थविर-भिक्षुओंमे यह कहा- "भन्ते ! भगवान्ने परिनिर्वाणके समय यह कहा-'आनन्द ! मेरे न रहनेके बाद मंच छन्न ( छं द क ) को ब्रह्म दंड की आजा दे।" "आवुस ! पूछा तुमने ब्रह्मदंड क्या है ?" "भन्ते ! मैंने पूछा० ।–'आनन्द ! छन्न भिक्षु जैमा चाहे वैमा बोले; भिक्षु छन्नको न वोलें, न उपदेश करें, न अनुशासन करें।" "तो आवुस आनन्द ! तू ही छन्न भिक्षुको ब्रह्मदंडकी आना दे।" "भन्ते ! मैं छन्नको ब्रह्मदंडकी आज्ञा करूंगा, लेकिन वह भिक्षु चंड परुप (=कटुभापी) है।" "तो आवुस आनन्द ! तुम बहुतसे भिक्षुओंके साथ जाओ।" "अच्छा भन्ते ।". . .कहकर आयुष्मान् आनन्द पाँचसौ भिक्षुओंके महाभिक्षुमंबके साथ नाव- पर कौशाम्बी गये। (१) उदयन और उसके रनिवासको उपदेश २–कौशाम्बी नावसे उतरकर राजा उदयनके उद्यानके समीप एक वृक्षके नीचे बैठे। उस समय राजा उ द य न रनिवास (=अवरोध ) के साथ वागकी सैर कर रहा था। राजा उदयनके अवरोधने सुना-हमारे आचार्य आर्य आनन्द उद्यानके समीप एक पेळके नीचे बैठे हैं। तब अवरोधने राजा उदयनसे कहा- 'देव ! हमारे आचार्य आर्य आनन्द उद्यानके समीप एक पेळके नीचे बैठे हैं, देव ! हम आर्य आनन्दका दर्शन करना चाहती हैं।" 'तो तुम श्रमण आनन्दका दर्शन करो।" तव . . . अवरोध जहाँ आयुष्मान् आनन्द थे, वहाँ . जाकर अभिवादनकर एक ओर बैठा। एक ओर वैठे हुए · · · रनिवासको आयुष्मान् आनन्दने धार्मिक कथासे मंदशित-प्रेरित समुत्तेजित, संप्रहर्पित किया । तब राजा उदयनके अवरोधने आयुष्मान् आनन्दको पाँच सौ चादरें (=उत्तरासंग) प्रदान की । तब अवरोध आयुष्मान् आनन्दके भापणको अभिनन्दित कर, अनुमोदित कर, आसनसे उठ आयुष्मान् आनन्दको अभिवादनकर, प्रदक्षिणाकर, जहाँ राजा उदयन था वहाँ चला गया। राजा उदयनने दूरसे ही अवरोधको आते देखा, देखकर अवरोधसे कहा- "क्या तुमने श्रमण आनन्दका दर्शन किया ?” “दर्शन किया देव ! हमने. . .आनन्दका ।" "क्या तुमने श्रमण आनन्दको कुछ दिया ?" "देव ! हमने पाँच सौ. . .चादरें दीं।' राजा उदयन हैरान होता था, खिन्न होता था विपाचित होता था-'क्यों श्रमण आनन्दने इतने अधिक चीवरोंको लिया, क्या श्रमण आनन्द कपळेका व्यापार (=दुम्सवणिज्ज) करेगा, या दूकान खोलेगा।' तब राजा उदयन जहाँ आयुष्मान् आनन्द थे, वहाँ गया, जाकर आयप्मान् आनन्दके साथ सम्मोदन कर...एक ओर बैठ गया । एक ओर बैठे राजा उदयनने आयुप्मान् आनन्दसे यह कहा- "हे आनन्द ! क्या हमारा अवरोध यहाँ आया था ?" "आया था महाराज ! यहाँ तेरा अवरोध।"