पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६२०

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१२०२।२) दोनों ओरसे तैयारी [ ५५१ 5२-दोनों ओरसे पक्ष-संग्रह २~-कौशाम्बी ( १ ) यशका अवन्ती-दक्षिणापथके भिक्षुओं और संभूत साणवासीको अपने पनमें करना तव आयुष्मान् यश काण्डका-पुत्तने पा वा वासी और अ व न्ती-द क्षि णा प थ-वासी भिक्षुओंके पास दूत भेजा---'आयुप्मानो ! आओ, इस झगळेको मिटाओ, सामने अधर्म प्रकट हो रहा है, धर्म हटाया जा रहा है, ० अविनय प्रकट होरहा है ०,०१ । उस समय आयुप्मान् नं भूत सा ण वा सी अ हो गं ग-पर्व न पर वास करते थे। तब आयु- प्मान् यशः जहाँ अहोगंग-पर्वत था, जहां आ० संभूत थे, वहां गये । जाकर आयुष्मान् संभूत साण- वासीको अभिवादनकर...एक ओर बेठ आयुग्मान् संभूत माणवामीमे बोले- "भन्ने ! यह वैशालिक वज्जिपुतक भिक्षु बैगालीमें दश बस्तुओंका प्रचार कर रहे हैं ० । अच्छा हो भन्ते ! हम इस जगळे (=अधिकरण)को मिटावें "अच्छा आवुस !" तव साठ पा वे य क भिक्षु-सभी आरण्यक, सभी पिडपातिक, सभी पाँसुकूलिक, सभी त्रिचीवरिक, सभी अर्हत्, अहोगंग-पर्वत पर एकत्रित हुए । अ व न्ती-द क्षि णा प थ के अट्ठासी भिक्षु-कोई आरण्यक, कोई पिंडपातिक, कोई पाँसुकूलिक, कोई त्रिचीरिक, सभी अर्हत्, अहोगंग- पर्वतपर एकत्रित हुये । तब मंत्रणा करते हुये स्थविर भिक्षुओंको यह हुआ---'यह झगळा (=अधि- करण) कठिन और भारी है; हम कैसे (ऐसा) पक्ष (सहायक) पावें, जिससे कि हम इस अधि- करणमें अधिक बलवान् होवे । उस समय वहुश्रुत, आगतागम, धर्मधर, विनयधर, मात्रिकाधर (=अभिधर्मज्ञ), पंडित, व्यक्त, मेधावी, लज्जी, कौकृत्यक (= संकोची), शिक्षाकाम आयुष्मान् रे व त सो रे य्यरे में वास करते थे;-'यदि हम आयुप्मान् रेवतको पक्षमें पावें, तो हम...इस अधिकरणमें अधिक वलवान् होंगे।' आयुष्मान् रेवतने अमानुप, विशुद्ध, दिव्य श्रोत्र-धातुसे स्थविर भिक्षुओंकी मंत्रणा ली। मुनकर उन्हें ऐसा हुआ—'यह अधिकरण कठिन और भारी है, मेरे लिये अच्छा नहीं कि मैं ऐसे अधि- करण (=विवाद) में न फट् : अब वह भिक्षु आवेंगे उनसे घिरा मैं सुखसे नहीं जा सकुँगा, क्यों न मैं आगे ही जाऊँ ।' तब आयुष्मान् रेवत सोरेय्यसे संकाश्य" गये । स्थविर भिक्षुओंने सोरेय्य जाकर पछा- 'आयुष्मान् रेवत कहाँ है ?' उन्होंने कहा-आयुप्मान् रेवत सं का क्य गये ।' तब आयुष्मान् वन मंकाम्यमे क न कुज्ज ( कान्यकुब्ज, कन्नौज) गये । स्थविर भिक्षुओंने संकाश्य जाकर पूछा- 'आयुष्मान् दन कहाँ हैं?' उन्होंने कहा-'आयप्मान् रेवत कान्यकुब्ज गये।' आयुप्मान् रेवत कान्यकुब्जमे उदुम्ब र गये ।०।० उदुम्बरसे अग्गलपुर गए ।। अग्गलपुरसे स ह जा ति५ गये ।०। तब न्थविर भिक्षु आयुष्मान् रेवतमे सहजातिमें जा मिले । ३-सहजाति (२) रेवतको पक्षमें करना आयुप्मान् मंभूत मा ण वा सी ने आयुष्मान् यश०से कहा-"आवुस ! यग ! यह आयु- प्मान् रेवत बहुश्रुत शिक्षाकामी हैं । यदि हम आयुष्मान् रेवतको प्रश्न पूछे, तों आयुप्मान् रेवत एक ५ पुल्ल ११९१११ (पृष्ठ ५४२) । हरद्वारके पास कोई पर्वत (?)। सोरों (जिला, एटा) । संकिसा (नोटा स्टेशन E.I.R. के पास) । ५भीटा, जि० इलाहाबाद ।