पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६२३

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"अच्छा आवुस ! 11 51 ५५४ ] ४-चुल्लबग्ग [ १२९२१५ "आयुष्मान् उत्तर स्थविरको इतनाही कहें-'भन्ते ! स्थविर (आप) संघके बीचमें इतनाही कह दें--प्राचीन (=पूर्वीय) देशों (जनपदों) में बुद्ध भगवान् उत्पन्न होते हैं, प्राचीनक (=पूर्वीय) भिक्षु धर्मवादी हैं, पावेयक भिक्षु अधर्मवादी हैं।" कह आयुष्मान् उत्तर जहाँ आयुष्मान् रेवत थे, वहाँ गये । जाकर आयुष्मान् रेवतसे वोले- "भन्ते ! (आप) स्थविर, संघके वीचमें इतनाही कहदें--प्राचीन देशमें बुद्ध भगवान् उत्पन्न होते है, प्राचीनक भिक्षु धर्मवादी हैं, और पावेयक भिक्षु अधर्म-वादी।" "भिक्षु ! तू मुझे अधर्ममें नियोजित कर रहा है" (कहकर) स्थविरने आयुष्मान् उत्तरको हटा दिया । तव ०वज्जिपुत्तकोंने आयुष्मान् उत्तरसे कहा- "आवुस उत्तर ! स्थविरने क्या कहा ?" "आवुस ! हमने बुरा किया । 'भिक्षु ! तू मुझे अधर्ममें नियोजित कर रहा है '-(कह कर) स्थविरने मुझे हटा दिया ।" "आवुस ! क्या तुम वृद्ध, बीस-वर्ष (के भिक्षु) नहीं हो?" "हूँ आवुस ! "तो हम (तुम्हें) बळा मानकर ग्रहण करते हैं।" उस अधिकरणका निर्णय करनेकी इच्छासे संघ एकत्रित हुआ । तब आयुष्मान् रेवतने संघको ज्ञापित किया- "आवुस ! संघ मुझे सुने–यदि हम इस विवाद (=अधिकरण) को यहाँ शमन करेंगे, तो शायद प्रतिवादी (=मूलदायक) भिक्षु कर्म (= न्याय) के लिये अमान्य (=उत्कोटन) करेंगे। यदि संघको पसन्द हो, तो जहाँ यह विवाद उत्पन्न हुआ है, संघ वहीं इस विवादको शांत करें।" तव स्थविर भिक्षु उस विवादके निर्णयके लिये वैशाली चले। -वैशाली ५) सर्वकामीका यशके पक्षमें होना उस समय पृथिवीपर आयुष्मान् आ न न्द के शिष्य सर्व का मी नामक संघ-स्थविर, उपसंपदा (=भिक्षुदीक्षा) होकर एकसौ बीस वर्षके, वैशाली में वास करते थे। तव आयुष्मान् रेवतने आ० संभूत साणवासी (=श्मशान वासी, या सन-वस्त्र-धारी) से कहा- "आवुस ! जिस विहारमें सर्वकामी स्थविर रहते हैं, मैं वहाँ जाऊँगा, सो तुम समयपर आयुष्मान् सर्वकामीके पास आकर इन दश वस्तुओंको पूछना।" "अच्छा, भन्ते !" तब आयुष्मान् रेवत, जिस विहारमें आयुष्मान् सर्वकामी थे, उस बिहारमें गये। कोठरी (गर्भ) के भीतर आयुष्मान् सर्वकामीका आसन बिछा हुआ था, कोठरीके बाहर आयुष्मान् रेवतका। तव आयुष्मान् रेवत-'यह स्थविर वृद्ध (होकर भी) नहीं लेट रहे हैं'-(सोचकर) नहीं लेटे । आयुष्मान् सर्वकामी भी यह नवागत भिक्षु थका (होनेपरभी) नहीं लेट रहा है-(सोच कर) नहीं लेटे । तव आयुष्मान् सर्वकामीने रातके प्रत्यूष (=भिनसार) के समय आयुष्मान् रेवतसे यह कहा- "तुम आजकल किस · · · विहारसे (=ध्यान) अधिक विहरते हो?" "भन्ते ! मैत्री विहारसे में इस समय अधिक बिहरता हूँ।" "कुल्लक (वेळा) विहारसे तुम इस समय अधिक विहरते हो, यह जो मंत्री है, यही ! कुल्लक विहार है।" "भन्ते ! पहिले गृहस्थ होनेके समय भी मैं मैत्री (भावना) करता था, इसलिये अब भी