पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६२२

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१२१२।४ ] दोनों ओरसे तय्यारी [ ५५३ "भन्ते वैशालिक वज्जिपुत्तक भिक्षु वैशालीमें इन दश वस्तुओंका प्रचार कर रहे हैं । अच्छा हो भन्ते ! हम इस अधिकरणको मिटावें ।" "अच्छा आवुस !" (कह) आयुष्मान् रेवतने आयुष्मान् यश० को उत्तर दिया । प्रथम भाणवार समाप्त ॥१॥ (३) वैशालोके भिक्षुओंका भी प्रयत्न वैशाली के व ज्जि पुत्त क भिक्षुओंने सुना, यश काकण्डकपुत्त, इस अधिकरणको मिटानेके लिये पक्ष ढूंढ रहा है। तब वैशालिक वज्जिपुत्तक भिक्षुओंको यह हुआ—'यह अधिकरण कठिन है, भारी है; कैसा पक्ष पावें कि इस अधिकरणमें हम अधिक बलवान् हों।' तब वैशालिकवज्जिपुत्तक भिक्षुओंको यह हुआ—'यह आयुष्मान् रेवत बहुश्रुत० हैं; यदि हम आयुष्मान् रेवतको पक्ष ( में ) पावें, तो हम इस अधिकरणमें अधिक बलवान् हो सकेंगे। तब वैशा- लीवासी वज्जिपुत्तक भिक्षुओंने श्रमणोंके योग्य बहुत सा परिष्कार (सामान) सम्पादित किया-पात्र भी, चीवर भी, निषीदन (-आसन, बिछौना) भी, सूचीघर (सूईकी फोफी) भी, कायबंधन (=कमर-बंद) भी, परिस्रावण (=जलछक्का) भी, धर्मकरक (गळुवा) भी । तव ०वज्जिपुत्तक भिक्षु उन श्रमण-योग्य परिष्कारोंको लेकर नावसे सहजातीको दौळे । नावसे उतरकर एक वृक्षके नीचे भोजन करने लगे। तव एकान्तमें स्थित, ध्यानमें बैठे आयुष्मान् साढ़के चित्तमें इस प्रकारका वितर्क उत्पन्न हुआ-'कौन भिक्षु धर्मवादी हैं ? पावेयक (पश्चिमवाले) या प्राचीनके (=पूर्ववाले) ?' तब धर्म और विनयकी प्रत्यवेक्षासे आयुष्मान् साढ़को ऐसा कहा- "प्राचीनक भिक्षु अधर्मवादी हैं, पावेयक भिक्षु धर्मवादी हैं ।". . ! तब वैशालिक वज्जिपुत्तक भिक्षु उस श्रमण-परिष्कारको लेकर, जहाँ आयुष्मान् रेवत थे, वहाँ - ‘जाकर आयुष्मान् रेवतसे वोले- "भन्ते ! स्थविर श्रमण-परिष्कार ग्रहण करें-पात्र भी०।" नहीं आवुसो ! मेरे पात्र-चीवर पूरे हैं।". . ! (४) उत्तरका वैशालीवालोंके पक्षमें होजाना उस समय वीस वर्षका उत्तर नामक भिक्षु, आयुष्मान् रे व त का उपस्थाक (=सेवक) था। तव व ज्जि पुत्त क भिक्षु, जहाँ आयुप्मान् उत्त र वहाँ गये, जाकर आयुप्मान् उत्तरको बोले- "आयुप्मान् उत्तर श्रमण-परिप्कार ग्रहण करें-पात्र भी०।" "नहीं आवुसो ! मेरे पात्रचीवर पूरे हैं।" "आवुस उत्तर ! लोग भगवान्के पास धमण-परिप्कार ले जाया करते थे, यदि भगवान् ग्रहण करते थे, तो उससे वह सन्तुष्ट होते थे; यदि भगवान् नहीं ग्रहण करते थे, तो आयुप्मान् आनन्दके पास ले जाते थे-'भन्ते ! स्थविर श्रमण-परिप्कार ग्रहण करें, जैसे भगवान्ने ग्रहण किया, दसा ही (आपका ग्रहण) होगा।' आयुप्मान् उत्तर भ्रमण-परिप्कार ग्रहण करें, यह स्थविर (=रेदत)के ग्रहण करने जैसा ही होगा।" तव आयुप्मान् उत्तरने ०वज्जिपुतक भिक्षुओंमे दवाये जानेपर एक चीवर ग्रहण किया- "कहो, भादसो! क्या काम है. कहो ?"