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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/७१

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, २८ ] भिक्खु-पातिमोक्ख [ ६५।६०-६८ ६०–जो कोई भिक्षु ( दूसरे ) भिक्षु के पात्र, चीवर, आसन, सुई रखनेकी फाँफी (सूचीघर ) या कसरबन्दको हटाकर चाहे परिहासके लिये ही क्यों न रखे, पाचित्तिय है। (इति) मुनापान धगा ॥३॥ (२१) प्राणिहिमा ६१–जो कोई भिक्षु जानकर प्राणीके जीवको मारे, उसे पाचित्तिय है। ६२-जो कोई भिक्षु जानकर प्राणि-युक्त जलको पाये, उस पाचित्तिय है। (२२) झगड़ा बढ़ाना ६३-जो कोई भिक्षु जानते, धर्मानुसार फैसला हो गये मामलेको फिरसे चलवाने के लिये प्रेरणा करे, उसे पाचित्तिय है । (२३) अपराध छिपाना ६४–जो कोई भिक्षु जानते हुए (दूसरे) भिन्नुसे दुट्ठल' अपराधको छिपाये, उसे पाचित्तिय है। (२४) कम आयुवालेको उपसम्पदा ६५-यदि भिक्षु जानते हुए बीस वर्षसे कमके व्यक्तिको उपसम्पन्न (= भिक्षु बनाना) करें तो वह व्यक्ति अन्-उपसम्पन्न ( समझा जाय ), वह भिक्षु निन्दनीय हैं—यह इस (अपराध )में पाचित्तिय (=प्रायश्चित्त ) है। (२५) यात्राके साथी ६६-जो कोई भिक्षु जानते हुए सलाह करके चोरोंके काफिलेके साथ एक रास्तेसे, चाहे दूसरे गाँव ही तक, जाये, उसे पाचित्तिय है। ६७—जो कोई भिक्षु सलाह करके स्त्रीके साथ एक रास्तेसे, चाहे दूसरे गाँव तक ही, जाय, उसे पाचित्तिय है। (२६) बुरी धारणा ६८२–जो कोई भिक्षु ऐसा कहे-मैं भगवानके धर्मको ऐसे जानता हूँ, कि, भगवान्के जो (निर्वाण आदिके ) विनकारक कार्य कहे हैं, उनके सेवन करनेपर भी वह विन्न नहीं कर सकते। तो (दूसरे) भिक्षुओंको उसे ऐसा कहना चाहिये-"मत आयुष्मान् ! ऐसा कहाँ । मत भगवान पर झूठ लगायो। भगवानपर झूठ लगाना अच्छा नहीं है । भगवान ऐसा नहीं कह सकते । भगवान्ने विन्नकारक कार्यों को अनेक प्रकारसे विन्न करने वाले कहा है। सेवन करनेपर वह विन्न करते हैं—कहा है।" इस प्रकार भिक्षुओंके कहने पर वह भिनु यदि ज़िद् करे तो भिक्षुओंको तीन वार तक उसे छोड़नेके लिये उस भिक्षुको कहना चाहिये । यदि बार कहे जानेपर उसे छोड़दे तो अच्छा; यदि न छोड़े तो पाचित्तिय है। १ चार पाराजिक और तेरह संघादिसेस । २ देखो 'मझिम निकाय' १।३।२, पृष्ठ ८४ ।