६५।४८-५९ ] ५-पाचित्तिय [ २७ (१५) सेनाका तमाशा ४८-जो कोई भिनु वैसे किसी कामके बिना सेना प्रदर्शनको देखने जाये तो पाचित्तिय है। ४९-यदि उस भिनुको सेनामें जानेका कोई काम हो तो उसे दो तीन रात सेनामें वसना चाहिये । उससे अधिक वसे तो पाचित्तिय है। ५०-दो तीन रात सेनामें बसते हुए ( भी ) यदि भिक्षु रण-क्षेत्र (= उद्योधिका ), परेड (चलाय), सेना-व्यूह या अनीक (= हाथी घोड़ा आदिकी सेनाओंकी क्रमसे स्थापना )को देखने जाये, उसे पाचित्तिय है। ( इति ) अचेलक वग्ग ॥५॥ (१६) मद्य-पान ५१-सुरा और कच्ची शराब पीनेमें पाचित्तिय है। (१७) हँसी खेल ५२-उँगलोसे गुदगुदानेमें पाचित्तिय है। ५३–पानीमें खेल करनेमें पाचित्तिय है । ५४-(व्यक्ति या वस्तुके ) तिरस्कार करने में पाचित्तिय है। ५५-जो कोई भिनु (दूसरे) भिक्षुको डरवाये, उसे पाचित्तिय है । (१८) आग तापना ५६-वैसी जरूरत न होते जो कोई नीरोग भिक्षु तापनेकी इच्छासे आग जलाये या जलवाये, उसे पाचित्तिय है । (१९) स्नान ५७–जो कोई भिक्षु सिवाय विशेष अवस्थाके आध माससे पहले नहाये तो पाचित्तिय है । विशेष अवस्था यह हैं-ग्रीष्मके पीछेके डेढ़ मास और वर्षाका प्रथम मास, यह ढाई मास और गर्मीका समय, जलन होनेका समय, रोगका समय, काम (=लीपने पोतने आदिका समय ), रास्ता चलनेके समय तथा आँधी-पानीका समय । (२०) चीवर पात्र ५८-नया चीवर पानेपर नीला, काला या कीचड़ इन तीन दुर्वर्ण करनेवाले ( पदार्थों )मेंसे एकसे बदरंग ( = दुर्वर्ण) करना चाहिये । यदि भिनु तीन वदरंग करने वाले ( पदार्थों )मेंसे किसी एकसे नये चीवरको बिना वदरंग किये उपयोग करे, उसे पाचित्तिच है। ५९-जो कोई भिक्षु (किसी) भिक्षु, भिक्षुणी, शिक्षमाणा,' श्रामणेर या श्रामणेरी को, म्वयं चोवर प्रदान कर विना लौटाने (को सम्मति पाये) उपयोग करे, उसे पाचित्तिय है। 'जो भिक्षुणी होनेकी उम्मीदवारी कर रही हो ।
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