पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६७-सेखिय (१४६-२२० ) आयुष्मानो ! यह ( पचहत्तर ) सेखिय' बातें कही जाती हैं । (१) चीवर पहिनना १-परिमंडल ( चारों ओरसे ढाँककर वस्त्र ) पहिनूँगा–यह शिक्षा (ग्रहण ) करनी चाहिये। २–परिमंडल ओढूँगा । (२) गृहस्थोंके घरमें जाना, बैठना ३-(गृहस्थोंके) घरमें अच्छी तरह (शरीरको) आच्छादित कर जाऊँगा-1 ४-घरमें अच्छी तरह ( शरीरको ) आच्छादित कर बैलूंगा-०। ५-घरमें अच्छी तरह संयमके साथ जाऊँगा-1 ६–घरमें अच्छी तरह संयमके साथ वैलूंगा- -घरमें नोची आँख कर जाऊँगा- ८-घरमें नोची आँख कर वैलूंगा- ९-घरमें शरीरको बिना उतान किये जाऊँगा-01 १०-घरमें शरीरको बिना उतान किये वैलूंगा-०| (इति) परिमंडल वग्ग ॥ १॥ ११- (गृहस्थोंके ) घरमें कहकहा न लगाते जाऊँगा- १२- ( गृहस्थोंके ) घरमें कहकहा न लगाते वैलूंगा- १३-घरमें चुपचाप जाऊँगा-01 १४-घरमें चुपचाप वैलूंगा- १५-घरमें देहको न भाँजते हुए जाऊँगा- १६–घरमें देहको न भाँजते हुए वैदूंगा-1 १७–घरमें बाँहको न भाँजते हुए जाऊँगा-1 १८–घरमें बाँहको न भाँजते हुए वैलूंगा- १९–घरमें सिरको न हिलाते हुए जाऊँगा--01 २०-घरमें सिरको न हिलाते हुए बैलूंगा- (इति) उजग्धिक वग्ग ॥२॥ ५ “जिल शिक्षा (भिक्षु-नियर ) को ( लोग ) सीखते हैं, वह सेविय (शिक्षणीय ) हैं ( अट्टय.या)।" F-20] ५