३४ । भिक्खु-पातिमोक्ख [ ६७।२१-५४ २१–घरमें कमरपर हाथ न रखकर जाऊँगा- २२–घरमें कमरपर हाथ न रखकर बैलूंगा-01 २३–घरमें न अवगुंठित हो (=सिर ढाँके ) जाऊँगा-01 २४–घरमें न अवगुंठित हो (=सिर ढाँके ) वैलूंगा-1 २५-घरमें न पंजोंके बल जाऊँगा- २६-घरमें न पलथो मारकर बैलूंगा- (३) भिक्षान्न ग्रहण और भोजन २७–भिक्षान्नको सत्कारपूर्वक ग्रहण करूँगा-01 २८-(भिक्षा ) पात्रकी ओर ख्याल रखते भिक्षान्नको ग्रहण करूँगा-1 २९-(अधिक नहीं) मात्राके अनुसार सूप(=तेमन)वाले भिक्षान्नको ग्रहण करूँगा- ३०-(पात्रसे उभरे नहीं) समतल भिक्षान्नको ग्रहण करूँगा- (इति) खम्भक वग्ग ॥३॥ ३१–सत्कारके साथ भिक्षान्नको खाऊँगा-1 ३२-(भिक्षा) पात्रकी ओर ख्याल रखते भिक्षान्नको खाऊँगा- ३३–एक ओरसे भिक्षान्नको खाऊँगा- ३४–मात्राके अनुसार सूपके साथ भिक्षान्नको खाऊँगा- ३५-पिंड (स्तूप )को मीज मींजकर नहीं भोजन करूँगा- ३६–अधिककी इच्छासे दाल या भाजी ( व्यंजन )को भातसे नहीं ढाँकुँगा- ३७-नीरोग होते अपने लिये दाल या भातको माँगकर नहीं भोजन करूँगा- ३८-न अवज्ञाके ख्यालसे दूसरोंके पात्रको देखूगा-०। ३९-न बहुत बड़ा ग्रास बनाऊँगा-०। ४०-ग्रासको गोल बनाऊँगा- (इति) सक्कच्च-वग्ग ॥४॥ ४१-ग्रासको विना मुँह तक लाये मुखके द्वारको न खोलूँगा-० । ४२-भोजन करते समय सारे हाथको मुँहमें न डालूंगा- ४३-ग्रास पड़े हुए मुखसे बात नहीं करूंगा-०। ४४-ग्रास उछाल उछालकर नहीं खाऊँगा-०। ४५-ग्रासको काट काटकर नहीं खाऊँगा-०। ४६-न गाल फुला फुलाकर खाऊँगा-०। ४७-न हाथ झाड़ भाड़कर खाऊँगा-०। ४८-न जूठ विखेर विखेरकर खाऊँगा-०। ४९-न जीभ चटकार चटकारकर खाऊँगा-०। ५०-न चपचप करके खाऊँगा-०। (इति) कवळ-वग्ग ॥५॥ ५१-न सुड़सुड़कर खाऊँगा-। ५२-न हाथ चाट चाटकर खाऊँगा-०। ५३-न पात्र चाट चाटकर खाऊँगा- ५४-न अोठ चाट चाटकर खाऊँगा-
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