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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८

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भूमिका वृद्धके उपदेगोंको तीन पिट कों में बँटा कहा जाता है। यथार्थमें मा त्रि का ओं को छोळ गेष अभिधर्मपिटक पीछेका है: और इस प्रकार बुद्धके कथित उपदेशों और नियमोंके लिये हमें मुक्त और विनय पिटकोंकी ओर ही देखना पळेगा। चुल्लवग्गके पं च गति का स्कंध क (पृष्ठ ५४८)में पाठक मिर्फ धर्म (मृत्त) और वि न य के ही संगायनकी वात पायेंगे। मुत्त पि ट क के ग्रंथोंके बारेमें मैंने धम्म प द के अनुवादके समय कुछ कहा है । यहाँ विनय-पिटकके बारेमें कुछ विशेष परिचय देना अनावश्यक न होगा। विनय (=Discipline) कहते हैं नियमको। चूंकि इस पिटकमें भिक्षु-भिक्षुणियोंके आचार संबंधी नियम तथा उनके इतिहास और व्याय्याओंको जमा किया गया है, इसलिये इसका नाम विनयपिटक यथार्थ ही है। चुल्ल व रंग के न प्न गति का स्कं ध क (पृष्ठ ५४९)से मालूम है कि बुद्ध-निर्वाणके १०० वर्ष बाद बौद्ध भिक्षु दो निकायों (==मम्प्रदायो) में विभक्त हो गये--प्राचीन बातोंके दृढ़ पक्षपाती स्थविर बहलाने थे, और विनय-विन्द्र कुछ नई बातोंके प्रचार करनेवाले म हा मां घि क । पालीकी कथा व न्यु-अट्टकथा, बी प-त्र म. म हा वंम तथा कुछ और ग्रंथोंके अनुसार बुद्ध-निर्वाणके २२० वर्षों बाद सत्राट अशोकवं समय म हा ग्यां घि को और स्थ दिरों में फिर कितने ही छोटे मोटे मतभेद होकर १८ निकाय हो गये। क था व न्यु-अट्ट क था के अनुसार यह गाग्याभेद इस प्रकार है-- वृद्ध-धर्म १-जयविरवादी १३-महामांधिक

-जिपत्रक

(बालीपत्रीय) 5-महीयामवः १८-कव्यावहारिक १५-गोकुलिक ८-धर्मगतिक. -नर्वास्तिवादी १६-प्रनप्निवादी १०-काट्यपीय १७-वाहलिक (बाहुश्रुतिक) ११-मांक्रान्तिक १८-चैत्यवादी i vaio 1-571117

-मानीय

-त्रवादी (नौत्रान्तिक) अनुमदिन मदान मित्र-मीद अन्यादा दिवार गंधर, अनुगार यह अटारह