[ २ ] बुद्ध-धर्म १-स्थविरवादी १३-महामांधिक २-हैमवत १४-शि-चि-लुन १६-लोकोत्तरवादी १७-एकव्यावहारिक (=प्रज्ञप्तिवादी?) १५-चैतीय १८-गोकुलिक ३-वात्सीपुत्रीय ४-धर्मोत्तरीय ५-भद्रयाणीय ६-सम्मितीय ७-पाण्णागरिक -८-सर्वास्तिवादी ९-महीशासक ११-काश्यपीय १२-सौत्रान्तिक १०-धर्मगुप्त यद्यपि दोनों परम्पराओंमें भेद है, तो भी इन पुराने निकायोंके अठारह भेदको सभी सम्प्रदायों और देशोंके बौद्ध ग्रंथ मानते हैं। ईसाकी चौथी पाँचवीं शताब्दीमें महायानके प्राबल्यके पूर्व भारत और वृहत्तर भारतमें कहीं न कहीं सभी निकायोंके अनुयायी मिलते थे, जिनमें दक्षिण भारतमें सम्मितीय और चैत्यवादी, लंकामें स्थविरवादी तथा उत्तर भारतमें सर्वास्तिवादी प्रधान स्थान ग्रहण करते थे। १८ निकायोंमें सबके सूत्र, विनय और अभिधर्मपिटक भी थे, जिनमें कितनी ही जगहोंमें भेद होनेपर भी वह महायान-सूत्रोंकी अपेक्षा आपसमें बहुत अधिक सादृश्य रखते थे। उन निकायोंके नाशके साथ उनके पिटकोंका भी सर्वदाके लोप हो गया है; सिर्फ़ महासांघिक, सर्वास्तिवादी तथा एकाध औरके कुछ ग्रंथ चीन और तिब्बतकी भापाओंमें अनुवादित हो अब भी मिलते हैं। सर्वास्तिवाद और स्थविरवादके विनय-पिटकोंकी तुलना जिस अनुवादको हम पाठकोंके सामने रखते हैं, वह स्थविर-निकायका है। स्वर्गीय फ्रेंच विद्वान मेनार्ने लोकोत्तर-वादियोंके म हा व स्तु नामक विनयग्रंथको संस्कृतमें छपवाया है, किन्तु वह लोकोत्तर- वादियोंके विनयपिटकका एक अंश मात्र ही है। हाँ, भोटभापामें अनुवादित मूल सर्वास्तिवादियोंका विनयपिटक सम्पूर्ण है, उससे तुलना करनेपर हमें दोनोंमें वहुत समानता मिलती है। यद्यपि आजकल पाली विनयपिटकमें परि वा र'को भी शामिल किया जाता है, किन्तु उसके देखनेहीसे मालूम होता है, वह वि भंग और ख न्ध क ग्रंथोंका संक्षेप मात्र है; और वह पढ़नेवालोंकी सुगमताके लिये वादमें बनाया गया। विनयका विभाग स्थविरवादीय पिटकमें इस प्रकार है-- १परि वा र के अनुसार लंकामें विनय-परम्परा- १--बुद्ध २--उपालि ३-दासक ४--मोणक
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