पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२-भिक्खुनी-पातिमोक्ख निदान। १-पाराजिक। २-संघादिसेस।३-निस्सग्गिय-पाचित्तिय। ४ -पाच- त्तिय । ५-पाटदेसनिय । ६-सेखिय । ७-अधिकरण-समथ । निदान ( एक भिक्षुणी-) आर्ये ! संघ मेरी (वात ) सुने, यदि संघको पसंद हो ( तो ) मैं इस नामको' आर्यासे विनय पूछू ।' ( चुनी जाने वालो भिक्षुणी-) आर्ये ! संघ मेरी ( वात ) सुने, यदि संघको पसंद हो ( तो) इस नामकी प्रार्या द्वारा पूछे विनय (=भिक्षुणी-नियम )का उत्तर दूं।- सम्मज्जनी पदीपो च उदकं आसनेन च । उपोसथस्स एतानि पुचकरणन्ति वुच्चति ॥ (सन्मार्जनी प्रदीपश्च उदकं आसनेन च । उपोसथस्य एतानि पूर्वकरणमित्युच्यते ॥) ( संघसे ) अवकाश ( माँगकर कहती हूँ )-सम्मज्जनी झाडू देना (उपोसथागार को साफ करना ), पदीपो च = और दिया जलाना [ (दिन होनेपर-) इस समय सूर्यके प्रकाशके कारण दोपकका काम नहीं है ( कहना चाहिये ) ], उदकं वासनेन च = और श्रासन (विछाने )के साथ पीने तथा धोनेके लायक जलको रखना, एतानि संमार्जन करना आदि यह चार कार्य (व्रत ) संघके एकत्रित होनेसे पहिले किये जानेसे, उपोसथस्त उपोसथ के, पुचकरणन्ति = "पूर्व-करण", वुच्चति = कहे जाते हैं। छन्द-पारिसुद्धि उतुक्खानं भिक्खुनी-गणना च ओवादो। उपोसथस्स एतानि पुबकिच्चन्ति वुच्चति ॥ (छन्द-पारिशुद्धिः ऋतु-ख्यानं भिक्षुणी-गणना चाऽववादः । उपोसथस्यैतानि पूर्वक पमित्युच्यते ॥) छन्दपारिसुद्धि-बन्द ( =सम्मति=Vote)के योग्य ( रोगो आदि होनेके कारण . ५ यहाँ जिन्य भिक्षुणीको उस दिन धर्मासनके लिये चुनना हो, उसका नाम लेना चाहिए। २ संघकी स्वीकृति जान वह भिक्षुणी संघको प्रणाम कर सबके आरम्भमें रक्खे धर्मासनपर धे आगेकी दातोंको कहती है । प्रस्तावक भिक्षुणीका यहीं नाम लेना चाहिये। हष्ण चतुर्दशी और अमावस्या । 9