४० ] भिक्खुनी-पातिमोक्ख उपोसथमें स्वयं उपस्थित न हो सकनेवाली ) भिक्षुणियोंके छन्द और शुद्धता', उतुक्खानं हेमन्त आदि तीन ऋतुओंमेंसे इतने बीत गये, इतने बाकी हैं—का कहना । यहाँ (वौद्ध-) धर्ममें हेमन्त, ग्रीष्म, वर्षाको लेकर तीन ऋतुयें होती हैं। [(जैसे-) यह हेमन्त ऋतु है, इस ऋतुमें (प्रत्येक पक्षमें एक एक करके ) आठ उपोसथ ( होते हैं ), इस पक्षसे एक उपोसथ पूर्ण हो रहा है, एक उपोसथ ( पहिले ) चला गया, (अव) छ उपोसथ बाको हैं ] । भिक्खुनी-गणना च=ओर इस उपोसथमें एकत्रित भिक्षुणिोंकी गणना [इतनी] भिक्षुणियाँ हैं, अोवादो भिक्षुणियोंको उपदेश देना एतानि पुब्बकिच्चन्ति बुञ्चति छन्द भेजना आदि यह पाँच काम पातिमोक्ख कहनेसे पहिले किये जानेसे, उपोसथस्स उपोसथ कर्मके, पुब्बकिचन्ति वुच्चति="पूर्वकृत्य' कहे जाते हैं । उपोसथो, यावतिका च भिक्खुनी, कम्मप्पत्ता सभागापत्तियो च । न विजन्ति बजनीया च पुग्गला तस्मि न होन्ति, पत्तकल्लन्ति बुच्चति । ( उपोसथे यावन्तश्च भिक्षुण्यः, कर्मप्राप्ताः सभागापत्तयश्च । न विद्यन्ते वर्जनीयाश्च पुद्गलाः तस्मिन् न भवति, प्राप्तकल्यमित्युच्यते ॥) उपोसथो=( कृष्ण-) चतुर्दशी, पूर्णमासी, (और विशेष कामके लिये संघका ) एकत्रित होना-इन तोन उपोसथके दिनोंमें [अाज पूर्णमासीका उपोसथ है ] । यावतिका च भिक्खुनियोजितनो भिक्षुणी, कम्मप्यत्ता उस उपोसथ-कर्मको प्राप्त, के योग्य के अनुरूप हैं, कमसे कम चार शुद्ध भिक्षुणियाँ जो कि(१) भिक्षुणी-संघ द्वारा न त्यागी;(२) हस्त-पाशको विना छोड़े (=बैठकके घिरावेके बिना तो है) एक सोमाके भीतर स्थित; (३) सभागापत्तियो च न विज्जन्ति = ( उनमें ) दोपहर बाद भोजन करने आदिके अपराध (=आपत्तियाँ) नहीं होते; (४) वज्जनीया च पुग्गला तस्मिं न होन्ति = गृहस्थ नपुंसक आदि बैठकके घिरावे(=हस्त-पाश )से दूर रक्खे जानेवाले इक्कोस ( प्रकारके ) व्यक्ति उस ( उपोसथ ) में नहीं होते; पत्तकल्लन्ति वुच्चति-इन चार लक्षणोंसे युक्त संघका उपोसथ-कर्म प्राप्तकल्य= उचित समयसे युक्त कहा जाता है । पूर्वकरण, (और ) पूर्वकृत्योंको समाप्त कर, (अपने ) दोषोंको ( एक दूसरेको) बतला- कर एकत्रित हुए भिक्षुणी-संघकी अनुमतिसे प्रातिमोक्षकी आवृत्तिके लिये प्रार्थना करती हूँ। आर्ये ! संघ मेरी (वात ) सुने-आज पूर्णमासी का उपोसथ है। यदि संघ उचित समझे तो उपोसथ करे और प्रातिमोक्ष (=नियमों)का आवृत्ति करे। संघको क्या है पूर्व-कृत्य ? आर्याओ ! ( अपनों ) शुद्धता ( =अ-दोषता )को कहो, हम प्रातिमोक्षकी आवृत्ति करने जा रहे हैं, सो हम सभी शान्त हो अच्छी तरह सुनें और मनमें करें । जिससे कोई दोप हुआ हो वह प्रकट करे । दोष न होनेपर (उसे) चुप रहना चाहिये । चुप रहनेपर मैं आर्याओंको शुद्ध (=दोप-रहित) सममँगी । जैसे एक-एक आदमोसे १ अनुपस्थित व्यक्ति संघके सामने आनेवाले अभियोग या दूसरे काममें अपनी सम्मति, दूसरे भिक्षु द्वारा भेज सकता है, इसीको यहाँ छन्द कहा गया है । इसी प्रकार रोगी व्यक्ति अपनी अदोपता ( =शुद्धता )को भी दूसरे द्वारा ( Proxy ) भेज सकता है, जिसे पारिशुद्धि कहा गया है। २ यहाँ जिस दिन का उपोसय हो, उसका नाम लेना चाहिये ।
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