पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/८९

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४६ ] भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६२११३-१६ भिक्षुणी-संघके प्रति द्रोह करती हो और एक दूसरेके दोपोंको छिपाती (बुरे) संसर्गमें रहती हो। भगिनियोंका संघ तो एकान्त शील और विवेकका प्रशंसक है।" यदि उनके ऐसा कहनेपर वे भिक्षुणियाँ अपने दोषोंको छोड़ देनेके लिये न तैयार हों तो वे तीन बार तक उनसे उन्हें छोड़ देनेके लिये कहें । यदि तीन बार तक कहनेपर वे उन्हें छोड़ दें तो यह उनके लिये अच्छा है नहीं तो वे भिक्षुणियाँ भी० । १३-जो कोई भिक्षुणी ( दूसरी ) भिक्षुणियोंको ऐसा कहे-"आर्यायो ! तुम सब (बुरे ) संसर्गमें रहो; मत अलग रहो ! संघमें ऐसे प्राचार ऐसो बदनामी, ऐसी अपकोति- वाली, भिक्षुणी-संघसे द्रोह करनेवाली, एक दूसरेके दोपको छिपानेवालो, दूसरो भिन्नु- णियाँ भी हैं। उनको संघ कुछ नहीं कहता, संघ दुर्बल और कमजोर होने के कारण तुम्हाराहो कोपसे अपमान करता है, परिभव करता है, और यह कहता है-'भगिनियो ! तुम सब दुराचारिणी, बदनाम, निंदित बन भिक्षुणी-संघके प्रति द्रोह करती हो, और अपने दोषोंको ढाँकनेवाली हो (बुरे) संसर्गमें रहतो हो। भगिनियोंका संघ तो एकान्तशीलता और विवेकका प्रशंसक है ?" तो भिक्षुणियोंको उस भिक्षुणीसे ऐसा कहना चाहिये-"आर्ये ! मत ऐसा कहो-'आर्याओ ! तुम सब ० विवेकका प्रशंसक है।" इस प्रकार उन भिक्षु- णियोंके कहे जाने पर० । यदि न माने तो वह भिक्षुणी भी० । (१०) संघमें फूट डालना १४-यदि कोई मिक्षुणी एकमत संघमें फूट डालनेका प्रयत्न करे, या फूट डालनेवाले झगड़ेको लेकर (उसपर ) हठपूर्वक कायम रहे, तो उसे और भिक्षुणियाँ इस प्रकार कहें- 'आर्ये ! मत (आप) एकमत संघमें फूट डालनेका प्रयत्न करें, मत फूट डालनेवाले झगड़ेको लेकर ( उसपर ) हठपूर्वक कायम रहें । आर्ये ! संघसे मेल करो। परस्पर हेलमेलवाला, विवाद न करनेवाला, एक उद्देश्यवाला, एकमत रखनेवाला संघ सुखपूर्वक रहता है ।” उन भिक्षुणियों द्वारा ऐसा समझाये जानेपर भी यदि वह भिक्षुणी उसी प्रकार अपनी जिद्पर कायम रहे तो दूसरी भिक्षुणियाँ उसे ० उसके लिये अच्छा है । यदि न छोड़े, तो वह ० । १५-उस ( संघ-भेदक ) भिक्षुणीको अनुयायी, पक्षपाती, एक दो या तीन भिक्षुणियाँ हों और वे यह कहें-"आर्याभो ! मत इस भिक्षुणीको कुछ कहो । यह भिक्षुणी धर्मवादिनी है। नियमानुकूल (विनय ) बोलने वाली है। हमारी भी राय और रुचिको लेकर यह कह रही है। हमारे मनकी (वातको) जानकर कहती है । हमको भी यह पसंद है।" तव दूसरी भिक्षुणियोंको उन भिक्षुणियोंसे इस प्रकार कहना चाहिये-“मत आर्यायो ! ऐसा कहो। यह भिक्षुणी धर्मवादिनी नहीं है और न यह नियमानुकूल बोलने वाली है । आर्याओंको भी संघमें फूट डालना न रुचना चाहिये। आर्याओ ! संघसे मेल करो । परस्पर हेलमेलवाला, विवाद न करनेवाला एक उद्देश्य वाला, एकमत रखने वाला संघ सुख-पूर्वक रहता है। यदि भिक्षुणियोंके ऐसा कहनेपर भी वे भिक्षुणियाँ अपनी ज़िद्को पकड़े रहें । यदि न छोड़ें | (११) वात न सुननेवाली बनना १६–यदि कोई भिक्षुणी कटुभापिणी है, विहित आचार नियमों (शिक्षा-पदों )के बारेमें उचित रोतिसे कहे जानेपर कहती है-"आर्यालोग अच्छा या बुरा मुझे कुछ मत कहें । मैं भी भार्याओंको अच्छा या बुरा कुछ न कहूँगी। आर्याओ ! मुझसे बात करनेसे वाज़ अायो।" तो ( अन्य ) भिक्षुणियोंको उस भिक्षुणीसे यह कहना चाहिये-"मत