पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ १०३ ]

धर्म है। क्या आपने नहीं सुना है कि आधुनिक वैज्ञानिक लोग क्या कहते हैं? विकास का कारण क्या है? केवल इच्छा। जंतु कुछ करना चाहते हैं, पर उन्हें उसके अनुकूल परिवेश नहीं मिलता; अतः उनके शरीर में नया परिवर्तन वा विकास होता है, उनका शरीर बदल जाता है। इस परिवर्तन का कारण कौन है? वही जंतु या उसकी इच्छा। आप तुच्छ अंभ (Amoeba) से विकास को प्राप्त हुए हैं। अपनी इच्छा से काम लेते जाइए; वह आपको और उच्च अवस्था पर पहुँँचा देगी। इच्छा सर्वशक्तिमती है। यदि यह सर्वशक्तिमती है, तो आप कह सकते हैं कि फिर मैं सब कुछ क्यों नहीं कर सकता हूँ? पर आप तो अपनी छोटी आत्मा के लिये विचार रहे हैं। आप अपनी दशा पर पीछे ताककर देखिए कि किसने आपको अंभ से मनुष्य का रूप दिया? यह सब किसका किया है? आपकी इच्छा ही का न? क्या आप इसकी सर्वशक्तिमत्ता का फिर भी निषेध करते रहेंगे? जिसने आपको इतना उच्च बनाया, वह आपको इससे और ऊँचे भी पहुँचा सकती है। आपको जिसकी आवश्यकता है, वह चारित्र्य है, इच्छा को पुष्ट करना है।

इसलिये यदि मैं आपको यह शिक्षा दूँ कि आपका स्वभाव बुरा है, घर जाइए, गुदड़ी पहन, भभूत रमाकर बैठिए और आजन्म रोते रहिए कि हमने अमुक भूल की है, इससे हमारा भला न होगा, हमारा सदा क्षय होता जायगा, तो मैं आपकों