पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/११३

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प्रकार मनुष्य के आध्यात्मिक झमेलों से नाना धर्मों का प्रादु- र्भाव हुआ है। जिस प्रकार भिन्न भिन्न सामाजिक संघटन सदा से एक दूसरे से लड़ते झगड़ते आ रहे हैं, वैसे ही यह धार्मिक संघटन भी परस्पर सदा से लड़ते झगड़ते आते हैं। एक प्रकार के सामाजिक संघटनवाले यह समझते हैं कि हम ही को रहने का स्वत्व है। जहाँ तक उनसे हो सकता है, वे निर्बलों के ऊपर अपने उस स्वत्व को काम में लाते रहते हैं। हम जानते हैं कि इस समय ऐसा ही भयानक झगड़ा दक्षिणी अफ्रिका में चल रहा है। इसी प्रकार सब धार्मिक संप्रदाय स्वयं अपना रहने का स्वत्व समझ रहे हैं। और इस प्रकार हम देखते हैं कि धर्म से बढ़कर मनुष्य के कल्याण का हेतु कोई दूसरा नहीं था, पर साथ ही उससे बढ़कर किसी से हानि भी नहीं हुई होगी। मनुष्य में धर्म से बढ़कर कोई दूसरा शांति और प्रेम का उत्पन्न करनेवाला नहीं हुआ है और उससे बढ़कर किसी ने भयानक घृणा भी न उत्पन्न की होगी। न तो धर्म से बढ़कर किसी ने मनुष्य में भ्रातृभाव को दृढ़ किया होगा और न इससे बढ़कर किसी ने मनुष्यों में घोर शत्रुता उत्पन्न की होगी। धर्म के कारण मनुष्यों के हित के लिये जितने दान- सत्र और चिकित्सालय स्थापित हुए, उतने और किसी के कारण नहीं हुए; और न जितना रक्तपात धर्म के कारण हुआ, उतना और हेतु से हुआ होगा। हम यह भी जानते हैं कि सदा से एक और विचार की लहर भी भीतर ही भीतर काम