पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/११५

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दोष है। आप लोगों में से जिन्होंने संसार में धर्मों की गति देखी है, यह जानते हैं कि संसार के बड़े धर्मों में एक भी नष्ट नहीं हुआ है; केवल यही नहीं, बल्कि सब बढ़ते जा रहे हैं। ईसाई बढ़ते जाते हैं, मुसलमान बढ़ रहे हैं, हिंदू लोग भी पीछे नहीं हैं और यहूदी लोग भी बढ़ रहे हैं। संसार में चारों ओर सब फैलते जा रहे हैं और उनकी संख्या बढ़ रही है।

केवल एक ही धर्म―संसार का प्राचीन धर्म―जो धुँँधुला पड़ रहा है, वह जरतुश्त का धर्म है―प्राचीन फारसवालों का धर्म है। मुसलमानों के आक्रमण करने के कारण लगभग एक लाख मनुष्यों ने भागकर भारतवर्ष में शरण ली थी और कुछ वहा रह गए थे। जो लोग फारस में रह गए थे, मुसलमानों के अत्याचार से उनका क्षय हो गया और अब उनमें से केवल दस हजार बच रहे हैं। भारतवर्ष में उनकी संख्या अस्सी हजार है, पर वे बढ़ नहीं रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि इसका प्रधान कारण यही है कि वे दूसरों को अपने धर्म में नहीं लेते। और थोड़े से लोग जो भारतवर्ष में रह गए हैं, सगोत्र विवाह की निकृष्ट प्रथा रखते हुए भी बढ़ नहीं रहे हैं। एक इसी धर्म को छोड़कर संसार के सब धर्म जीवित हैं, फैल रहे हैं और उन्नति करते जाते हैं। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि संसार के बड़े बड़े धर्म बहुत पुराने भी हैं। इनमें से एक भी आजकल का नहीं है और सब धर्म गंगा और फरात नदियों के बीच के देशों से निकले हैं। इन धर्मों में से एक भी न युरोप से निकला