और मेरी इच्छा है कि वे दिन दूने रात चौगुने होते जायँ।
क्यों? कारण यह है कि यदि आप और मैं और सब लोग
एक ही बात को सोचें, तब तो फिर कोई नया विचार करने को
बचता ही नहीं। हम जानते हैं कि गति को उत्पन्न करने के
लिये दो या अधिक शक्तियों के संघर्ष की आवश्यकता है।
यह विचारों का संघर्ष है, विचारों का भेद है जिससे विचार की
जाग्रति होती है। अब यदि हम सब लोगों का एक ही विचार
हो तब तो हम लोग मिस्र की मोमियाई हो जायँगे, जो चुप-
चाप अजायबघर में पड़ी पड़ी एक दूसरे का मुँह ताका करती
हैं। इसकी तो कुछ बात ही नहीं। भँवर और चक्कर तो बहती
नदी ही में होते हैं। ठहरे पानी में कहीं भँवर नहीं उठते।
जब धर्म मृत धर्म है, तब उसमें संप्रदाय कहाँ से होंगे? भेद
जीवन का चिह्न है। जहाँ जीवन है, वहाँ वह अवश्य रहेगा।
मेरी तो प्रार्थना है कि उनकी वृद्धि हो और अंत को जितने
मनुष्य हैं, उतने ही संप्रदाय हो जायँ। एक एक का मार्ग अलग
हो, प्रत्येक का धार्मिक विचार निराला हो।
पर यह अब भी है। इसमें प्रत्येक अपने ढंग पर विचार करता है। पर यह स्वाभाविक प्रवाह सदा से रोका जाता चला आया है और अब भी रोका जा रहा है। यदि तलवार खुले- आम न चलेगी तो कुछ और रास्ता निकलेगा। तनिक सुनिए कि न्यूयार्क के प्रसिद्ध उपदेशकों में से एक का क्या कथन है। उसका उपदेश है कि फिलिपाइन्सवालों को विजय कर लेना
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