होते हैं। यदि ईश्वर ने सारी सच्चाई किसी पुस्तक-विशेष में
लिख रखी हो तो उसने हमें वह पुस्तक इस भय से नहीं दी
है कि हम उसके मूल के ऊपर कट न मरें। यह बात सच्ची
जान पड़ती है। कारण यह है कि यदि ईश्वर ने ऐसी पुस्तक
दी होती जिसमें उसने सारी सचाइयाँ भर रखी हैं, तो उससे
काम भी न चलता, कोई उसे समझता तो है ही नहीं। उदा-
हरण के लिये इंजील को और ईसाई धर्म के सारे संप्रदायों
को ले लीजिए। सब एक ही वाक्य का अपना अपना अर्थ करते
हैं और अपने अर्थ को ठीक और दूसरे के अर्थ को भ्रमात्मक
बतलाते हैं। यही दशा अन्य धर्मों को भी है। मुसलमानों में
अनेक संप्रदाय हैं, बौद्धों में भी अनेक मत हैं और हिंदुओं में
तो सैकड़ों संप्रदाय होंगे। अब मैं आपके सामने इन बातों को
इस अभिप्राय से रखता हूँ कि यह वात सिद्ध हो जाय कि
सारे मनुष्यों को एक ही प्रकार के आध्यात्मिक विचार पर
लाने के लिये जब जब प्रयत्न किया गया, तब तब सदा से
विफलता ही होती आई है। यदि कोई मनुष्य कोई सिद्धांत
निर्धारित करता है तो यह देखने में आता है कि जब वह अपने
अनुयायियों से बीस मील पर जाता है,तो उनमें बीस संप्रदाय
हो जाते हैं। आप देखिए कि यह सदा होता ही रहता है।
आप सबको एक ही विचार पर नहीं ला सकते। यह सच्ची
बात है और ईश्वर का धन्यवाद है कि ऐसा ही है। मैं किसी
संप्रदाय का विरोधी नहीं हूँ। मैं प्रसन्न हूँ कि संप्रदाय बने हैं
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