पूर्ति होती है? जब मैं नितांत बच्चा था, तभी से मेरा विचार
इसकी ओर गया और मैं जन्म भर इसीको विचारता रहा
हूँ। यह समझकर कि मेरे निकाले परिणाम से आपको
भी कुछ सहायता मिलेगी, मैं उसे आपके सामने प्रकट करता
हूँ। मेरा विश्वास है कि वे विरोधी नहीं हैं, वे पूरक हैं।
प्रत्येक धर्म, बड़े व्यापक धर्म के एक अंश को ले लेता है और
उसी अंश को लेकर उसे आकार देने और आदर्श बनाने में
अपना सारा बल लगाता है। यही कारण है कि यह अन्वय
है, व्यतिरेक नहीं है। यही विचार है। मत पर मत उत्पन्न
होते जाते हैं। सबमें कुछ न कुछ महत्वपूर्ण विचार होते हैं
और आदर्श पर आदर्श बढ़ते जाते हैं। मनुष्यता की गति यही
है। मनुष्य मिथ्या से सत्य की ओर नहीं जाता, अपितु
सत्य से सत्य को पहुँचता है; कम सत्य से बड़े सत्य को
पहुँचता है। पर मिथ्या से कभी सत्य की उत्पत्ति नहीं होती।
पुत्र पिता से कितना ही क्यों न बढ़ जाय, इससे क्या पिता
कुछ था ही नहीं? पुत्र में पिता भी है और कुछ और भी है।
यदि आपका ज्ञान इस समय आपके बचपन के ज्ञान से अधिक
है, तो क्या आप बचपन के ज्ञान का तिरस्कार करेंगे? क्या उसे
देखकर यह कहेंगे कि वह कुछ नहीं था? क्यों? आपके वर्त-
मान ज्ञान में बचपन का ज्ञान और कुछ और बात मिली हुई है।
और फिर हम यह भी जानते हैं कि एक ही पदार्थ के विषय में संभव है, नितांत विरुद्ध मत हो, पर वे सब एक ही