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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१२४

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कर सकते, वैसे ही आप इन आध्यात्मिक शक्तियों का भी नाश नहीं कर सकते। आप जानते हैं और देख चुके हैं कि सब धर्म ज्यों के त्यों जीते जागते हैं, समय समय पर उनका ह्रास वा वृद्धि भले ही होती रहे। कभी वे अपने अनेक अवरोधों को छिन्न भिन्न कर डालते हैं, कभी उनके अवरोध बढ़कर उनको घेर लिया करते हैं। पर बात एक ही है। तत्व उनमें भरा रहता है, उसका नाश नहीं होता। वह आदर्श जो प्रत्येक धर्म अपने सामने रखता है, सदा बना रहता है। अतः सब धर्म सोच-विचार के साथ आगे बढ़ते जा रहे हैं।

और वह विश्वव्यापक धर्म जिसका स्वप्न दार्शनिक आदि देख चुके हैं, अब तक है। वह यहीं है। जैसे मनुष्यों का विश्वव्यापक भ्रातृभाव अब तक है, वैसे ही विश्वव्यापक धर्म भी है। आपमें कौन ऐसा है जो देश देशांतर गया हो और जिसे सब जातियों में भ्रातृभाव न मिला हो? मुझे तो सारे संसार में भ्रातृभाव ही मिला। सब अपने ही भाई देख पड़े। भ्रातृभाव है, बना है; केवल कुछ लोगों को दिखाई नहीं देता और वे नए भ्रातृभाव के लिये चिल्ला रहे हैं। विश्वव्यापक धर्म भी पहले से है। यदि उपदेशक और धर्माचार्य्य लोग, जिन्होंने अपने सिर भिन्न भिन्न धर्मों के प्रचार का ठेका ले रखा है, थोड़ी देर के लिये प्रचार रोक दें, तो देखिए कि वह मातृभाव प्रकट होता है कि नहीं। वे उसमें सदा बाधा डाला करते हैं। इसी में उनका लाभ है। आप देखते हैं कि सब देशों