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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१२६

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मैं आपके साथ सहमत नहीं हूँ। मैं संन्यासी हूँ, आप बहु- विवाह के पक्षपाती हैं। पर आप भारतवर्ष में जाकर उपदेश क्यों नहीं करते? यह सुनकर वह विस्मित हो गया और बोला कि आप तो विवाह न करने को अच्छा मानते हैं और मैं बहु- विवाह को अच्छा मानता हूँ; फिर भी आप कहते हैं कि मैं आपके देश में जाऊँ। मैंने कहा, मैं ठीक कहता हूँ। मेरे देश में लोग सब धर्मों की बातें सुनते हैं, वे चाहे किसी धर्म के क्यों न हों। मेरी इच्छा है कि आप भारतवर्ष में जाइए। पहली बात तो यह है कि मैं वर्णाश्रम को मानता हूँ। दूसरी यह कि भारतवर्ष में ऐसे भी लोग हैं जो वर्णाश्रम धर्म से तुष्ट नहीं हैं और इसी असंतोष के कारण उनको धर्म से कोई काम नहीं है। संभव है कि वे आपकी बातें सुनें। जितने ही संप्रदाय अधिक होंगे, उतनी ही लोगों की धर्म पर रुचि अधिक होगी। जहाँ दूकान पर अनेक भाँति के व्यंजन हैं, वहाँ लोग यथा रुचि भोजन कर सकते हैं। अतः मैं तो यह चाहता हूँ कि संप्रदाय बढ़ते जायँ और लोगों को धार्मिक होने का अवकाश मिलता रहे। यह मत समझो कि लोगों की रुचि धर्म पर नहीं है। मैं इसे न मानूँगा। प्रचारक उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार उप- देश नहीं करते। उसी मनुष्य की, जिसे लोग नास्तिक आदि कहां करते हैं, यदि किसी ऐसे मनुष्य से भेंट हो जाय जो उसकी आवश्यकता के अनुसार धर्म की शिक्षा दे, तो वही समाज में पूर्ण आस्तिक हो जाय। हम अपने ही प्रथानुसार भोजन करते