पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१३०

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यदि कोई ऐसा धर्मोन्मत्त संप्रदाय संसार भर में फैल गया होता, तो आज मनुष्य को कहाँ ठिकाना मिलता। ईश्वर का धन्यवाद है कि उनको सफलता नहीं मिली। पर फिर भी सब में एक न एक सच्चाई है; प्रत्येक धर्म में कुछ न कुछ विशेषता है―वही उसमें सार है। मुझे एक पुरानी कहानी याद आती है। कुछ राक्षस थे जो नाना भाँति के उपद्रव और मनुष्यों का संहार करते थे; पर उनका नाश नहीं होता था। अंत को एक मनुष्य को इस बात का पता चला कि उनके मन एक चिड़िया में रहते हैं; और जब तक वह विड़िया अछूती है, उनका नाश किसी प्रकार नहीं हो सकता। इस प्रकार हम सबके लिये कोई ऐसी चिड़िया है जिसमें हमारे मन बसते हैं; वही हमारा आदर्श है, वही हमारे जीवन का उद्देश है जिसको हमें पूरा करना है। प्रत्येक मनुष्य ऐसे आदर्श, ऐसे उद्देश का रूप है। चाहे जो कुछ जाता रहे, जब तक वह आदर्श बना है, उस उद्देश पर आघात नहीं पहुँचा है, आपका नाश किसी से न होगा। संपत्ति आवे और चली जाय, पर्वत के समान विपत्ति फट पड़े, पर जब तक आपका आदर्श सुर- क्षित है, आपका नाश किसी से न होगा। आप बुड्ढे क्यों न हो जायँ, आपकी आयु सौ वर्ष की क्यों न हो गई हो, पर यदि आपका मन नवीन और अभिनव बना है, तो आपका नाश कौन कर सकता है? पर जब वह आदर्श चला गया, उस उद्देश पर आघात पहुँचा, तब आपकी रक्षा नहीं। आपको