पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१३१

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कोई बचा नहीं सकता; सारी संपत्ति, संसार की सारी शक्तियाँ आपकी रक्षा नहीं कर सकतीं। और जातियाँ क्या हैं, व्यष्टियों के समूह ही तो हैं। जब तक जातियाँ अपने आदर्श को बनाए हुए हैं, कोई उनका नाश नहीं कर सकता। पर यदि कोई जाति अपने जीवन के उद्देश को त्याग दे और किसी और ओर चली जाय, तो उसकी आयु अल्प हो जाती है और वह जाति नष्ट हो जाती है।

यही अवस्था धर्म की भी है। इस बात से कि सब प्राचीन धर्म अब तक बने हैं, यह सिद्ध होता है कि वे अपने उद्देश को ज्यों का त्यों बनाए हुए हैं, उनका अंतःकरण, उनकी सारी भूलों, कठिनाइयों, विरोधों और उनके ऊपर कितनी ही तहों के चढ़ने के बाद भी हृष्ट पुष्ट है; उनका अंतःकरण धड़क रहा है और वे जीवित हैं। उनका एक भी उद्देश जिसे लेकर वे आए हैं, नष्ट नहीं हुआ है। उस उद्देश को जानना बड़े महत्व का काम है। उदाहरण के लिये मुसलमानी धर्म को लीजिए। ईसाई लोग संसार के किसी धर्म से इतनी घृणा नहीं करते जितनी मुसलमानी धर्म से करते हैं। उनका अनुमान है कि इससे निकृष्ट मत संसार में कोई है ही नहीं। ज्यों ही कोई मनुष्य मुसलमान होता है, सारे मुसलमान हाथ फैलाकर बिना किसी विचार के उसका स्वागत करते हैं। और कोई धर्म ऐसा नहीं करता। यदि कोई अमेरिकन इंडियन मुसलमान हो जाय तो टर्की के सुलतान तक को उसके साथ खाने में कोई आपत्ति न