पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१३६

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साथ गिरजे में जाऊँगा और क्रास के सामने घुटने टेकूँगा; मैं बौद्धों के मंदिर में भी जाऊँगा और बुद्ध और धर्म की शरण को प्राप्त हूँगा। मैं जंगल में जाऊँगा और हिंदुओं के साथ बैठूँगा जो उस प्रकाश को देखने के लिये प्रयत्न कर रहे हैं जो प्रत्येक हृदय में प्रकाशमान हो रहा है।

मैं न केवल यही करूँगा अपितु उन सबके लिये जो भविष्य में आनेवाले हैं, अपने हृदय में अवकाश रखूँँगा। क्या ईश्वर की पुस्तक पूरी हो गई है वा अब भी साक्षात्कार होता जा रहा है? यह अद्भुत पुस्तक है―संसार का श्रृंखलाबद्ध साक्षात्कार। इंजील, कुरान, वेद और दूसरे पवित्र धर्मग्रंथ केवल उसके थोड़े से पन्ने हैं; अभी असंख्य पन्ने बंद पड़े हैं। मैं उन्हें सबके लिये खोल दूँँगा। मैं वर्तमान काल में खड़ा हूँ, पर अपने को भविष्य में प्रकट करूँगा। मैं उन सबको जो पहले के हैं, ले लूँगा, वर्तमान काल के प्रकाश से लाभ उठाऊँगा और अपने अंतःकरण की एक एक खिड़की को उनके लिये खोल रखूँँगा जो भविष्य में आनेवाले हैं। नमस्कार है प्राचीन काल के धर्माचार्य्यों को, नमस्कार है इस समय के महापुरुषों को और नमस्कार है उनको जो भविष्य में होनेवाले हैं।


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