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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१४६

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सहानुभूति है। वे बकते नहीं; वे काम करते हैं, आजन्म काम करते हैं। संसार में व्यर्थ की बकवाद बहुत है। हमें कुछ काम करके दिखलानेवालों की आवश्यकता है जो अधिक बकें नहीं।

यहाँ तक तो हम देख चुके हैं कि धर्म का कोई विश्व- व्यापक रूप दिखाई पड़ना कठिन है। पर फिर भी हम यह जानते हैं कि वह है। हम सब मनुष्य हैं; पर क्या हम सब बराबर हैं? वास्तव में नहीं। कौन कहता है कि हम बराबर हैं? केवल वही जो पागल हैं। क्या हमारी बुद्धि, हमारे बल, हमारे शरीर सब बराबर ही हैं? एक मनुष्य दूसरे से बली है, एक मनुष्य दूसरे से बुद्धिमान् है। यदि हम सब बराबर ही हैं तो यह विषमता क्यों है? इसे किसने उत्पन्न किया है? हम ही ने तो। कारण यही है कि हममें न्यूनाधिक बल है, न्यूनाधिक पराक्रम है; इसी से हममें यह भेद है। फिर भी हम जानते हैं कि साम्यवाद का सिद्धांत हमारे मन को भला लगता है। हम सब मनुष्य हैं; पर कोई पुरुष है, कोई स्त्री है। यह एक काला मनुष्य है, वह एक गोरा है। पर सब मनुष्य मानवजाति के ही हैं। हमारे चेहरे में भेद है। मैं देखता हूँ कि दो के रूप एक से नहीं हैं। पर हैं सब मनुष्य ही। यह मनुष्यता क्या है? मैं देखता हूँ, कोई स्त्री है तो कोई पुरुष; कोई काला है तो कोई गोरा। पर मैं जानता हूँ कि इन सारे रूपों में एक कूटस्थ मनुष्यता है जो सब में व्याप्त है। यदि मैं उसे पकड़ना चाहूँ वा उसे देखना चाहूँ वा उसे साक्षात्कार करना चाहूँ तो संभव