मिटने के नहीं हैं। अपनी प्रकृति के अनुसार कोई एक मार्ग
से जा रहा है, कोई दूसरे मार्ग से। पर यदि हम सब अपनी
अपनी राह पर बड़ते चले जायँ, तो अंत को सब वहीं पहुँच
जायँगे। कारण यह है कि सब वहीं जाने के मार्ग हैं। सब लोग
अपनी प्रकृति के अनुसार हृष्ट पुष्ट हो रहे हैं; यथा काल सब
उस सर्वोत्कृष्ट सत्य को जानेंगे; क्योंकि अंततोगत्वा मनुष्य एक
दूसरे को शिक्षा देंगे ही। इसमें आपका और मेरा काम क्या
है? क्या आप समझते हैं कि आप किसी बच्चे को शिक्षा दे
सकते हैं? आप नहीं दे सकते। बच्चा अपने आपको शिक्षा
देता है। आपका काम यही है कि आप उसे अवसर प्रदान
करें और अवरोध को हटा दें। पौधा बढ़ता है। क्या उसे
आप बढ़ाते हैं? आपका काम यही है कि आप उसकी रुँँधाई
कर दें; कोई उसे खा न ले, यह देखते रहिए और आपके
कर्तव्य की समाप्ति यहीं पर है। फिर तो पौधा आपसे आप
बढ़ेगा। यही दशा मनुष्यों की आध्यात्मिक बाढ़ की भी है।
आपको कोई सिखा नहीं सकता; कोई आपको आध्यात्मिक
नहीं बना सकता। आपको स्वयं सीखना पड़ेगा; आपकी बाढ़
आपके भीतर से होगी।
एक बाहरी शिक्षक कर ही क्या सकता है? वह कुछ थोड़ा बहुत अवरोध को हटा सकता है। बस यही उसका काम है। अतः यदि आपसे हो सके तो सहायता दीजिए, पर बिगाड़िए मत। मनुष्यों को आध्यात्मिक बनाने के सारे विचार त्याग