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पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१५४

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दीजिए। यह असंभव है। आपका आपकी आत्मा के सिवा और कोई शिक्षक नहीं है। उसे पहचानिए। देखिए तो इसका क्या फल होता है। समाज में हम देखते हैं कि लोगों की प्रकृति कितनी भिन्न है। लोगों के विचार और रुचि सहस्रों प्रकार की हैं। उन सब का पूरा पूरा वर्गीकरण करना असंभव है। पर काम चलाने के लिये हम उनको चार विभागों में विभक्त किए लेते हैं। पहले तो काम करनेवाले हैं। वे काम करना चाहते हैं और उनके हाथ-पैर में अमोघ शक्ति भरी है। उनका उद्देश है काम करना, धर्मशाला आदि बनाना, दान आदि शुभ कर्म करना, ढंग सोचना और उसका प्रबंध करके दिखलाना। फिर उनके अतिरिक्त वैकारिक लोग हैं जो सुंदर और मनोहर पदार्थों पर लट्टू रहते हैं, जो सुंदरता के ध्यान में मग्न हो जाते हैं, जिन्हें प्रकृति का सौंदर्य देखकर आनंद आता है और जो प्रेम और प्रेम के ईश्वर की उपासना करते हैं; जो सब काल के महात्माओं, धर्माचार्य्यौं और ईश्वरांशावतारों पर श्रद्धा रखते हैं; जो इस बात की चिंता नहीं करते कि तर्क से वा युक्ति प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि नहीं कि ईसा और बुद्धदेव कभी थे। वे इस बात की चिंता नहीं करते कि किस दिन पर्वत के ऊपर ईसा ने उपदेश किया था वा भगवान् कृष्णचंद्र किस तिथि को उत्पन्न हुए थे। वे केवल इतना ही जानते हैं कि वे ईश्वरांश महात्मा थे और उन पर प्रेम रखते हैं। उनका आदर्श ऐसा ही है। भक्त का यही स्वरूप है, वैका-