पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१७९

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का रहस्य क्या है? सारा संसार ईश्वर की खोज के पीछे क्यों सिर खपा रहा है? ऐसा क्यों है? संसार में चारों ओर बंधन ही बंधन देख पड़ता है; चारों ओर प्रकृति अपना रूप पसारे खड़ी है; हम नियम की चक्की में पिसे जा रहे हैं; हमें करवट बदलने की छुट्टी नहीं मिलती; जिधर हम मुँह करते हैं, जहाँ भागकर जाते हैं, नियम दंड लिए हमारे पीछे लगा रहता है। कहीं छुटकारा नहीं। यह सब है तो सही, पर जीवात्मा अपनी मुक्त-स्वभावता को भूलता नहीं और सदा उसकी टोह में लगा रहता है। मोक्ष के लिये खोज ही धर्म की खोज है, चाहे कोई इसे समझे वा न समझे। चाहे वे उसकी व्यवस्था को ठीक वाँधें वा बेठीक बाँधें, पर यह भाव उनमें रहता है अवश्य। यहाँ तक कि असभ्य से असभ्य महामूर्ख मनुष्य ही क्यों न हो, वह भी ऐसी युक्ति की खोज में निरत रहता है जिससे वह प्रकृति के नियम से मुक्त हो जाय, उस पर उसका अधिकार रहे। वह भूत-प्रेत, देवी-देवता के पीछे इसी लिये पड़ा रहता है कि वे प्रकृति को अपने वश में रख सकते हैं, उनके लिये प्रकृति अति बलशालिनी नहीं है; उनके लिये कोई नियम नहीं है। “हाँ, ऐसा व्यक्ति जो नियम को तोड़ सके”! मनुष्य के अंतःकरण से यही शब्द आता है। हम सदा ऐसे मनुष्य की खोज में लगे रहते हैं जो नियम को तोड़ सके। इंजिन रेल की सड़क पर दौड़ता है और एक छोटा कीड़ा रेंगकर निकल जाना चाहता है। हम कहेंगे कि इंजिन जड़ पदार्थ और कीड़ा चेतन