पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१८८

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वह बड़ा समझदार था। उसने देखा कि मेरे पिता ने यथोचित दक्षिणा नहीं दी है और इसका फल उसके लिये अच्छा न होगा। उसने चाहा कि वह अपने आपको दक्षिणा में दिलवा दे और वह न्यूनता पूरी कर दे। वह अपने पिता के पास गया और बोला कि आप मुझे किसको देते हैं। पिता ने अपने पुत्र के पूछने पर कुछ उत्तर नहीं दिया और लड़के ने दूसरी बार और फिर तीसरी बार उससे वही प्रश्न किया। फिर तो पिता झुँझला उठा और बोला―“मैं तुझे यम को देता हूँ,―मैं तुझे मृत्यु को देता हूँ।” और लड़का सीधा यमलोक को चला गया। यम उस समय अपने स्थान पर नहीं थे। वह वहीं तीन दिन तक उनकी प्रतीक्षा में पड़ा रहा। तीन दिन बाद यम आए और उससे कहने लगे कि ‘हे ब्राह्मण! आप मेरे अतिथि हैं। आप तीन दिन यहाँ निराहार रहे हैं। आपको नमस्कार है। इसके बदले मैं आपको तीन वर देता हूँ।” लड़के ने पहला वर तो यह माँगा कि मेरे बाप का क्रोध जो मुझ पर है, जाता रहे; और दूसरे वर में उसने कुछ यज्ञ की बात पूछी। फिर उसने तीसरा वर माँगते हुए कहा कि―‘जब मनुष्य मर जाता है, तब यह शंका उत्पन्न होती है कि वह क्या हुआ? कुछ लोग कहते हैं कि वह रह नहीं जाता, कुछ लोग कहते हैं कि नहीं, वह बना रहता है। मैं तीसरे वर में यही माँगता हूँ। कृपापूर्वक बतलाइए कि बात क्या है?” मृत्यु ने कहा कि―“पूर्व काल में देवताओं ने इस भेद को जानने की बड़ी चेष्टा की है। यह रहस्य इतना